Motivational Concept: जानें, एक अनोखे युवक का रोचक किस्सा

Edited By Jyoti,Updated: 19 Oct, 2021 06:14 PM

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युवक अनोखा कंवर एक जमींदार था जो उदयपुर में रहता था। वह अपनी राष्ट्रभक्ति के लिए भी प्रसिद्ध था। एक दिन उसके घोड़े को रोक कर एक आदमी ने कहा, ‘‘मैं बहुत दूर से दूसरे राज्य से आया हूं।

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युवक अनोखा कंवर एक जमींदार था जो उदयपुर में रहता था। वह अपनी राष्ट्रभक्ति के लिए भी प्रसिद्ध था। एक दिन उसके घोड़े को रोक कर एक आदमी ने कहा, ‘‘मैं बहुत दूर से दूसरे राज्य से आया हूं। मैं इत्र बेचता हूं। बहुत ऊंची कोटि का इत्र है मेरे पास। महाराणा के लिए लाया था। उन्हें दिखाया भी। उन्हें इस इत्र के बढ़िया होने तथा इसकी विश्वसनीयता पर कोई संदेह नहीं। मूल्य भी ठीक लगा। मगर उन्होंने मुझे खाली हाथ लौटा दिया। खरीदा नहीं।’’

अनोखा कंवर, ‘‘क्या कहा उन्होंने?’’

‘‘अपने मंत्री से कह रहे थे, इतना कीमती इत्र खरीद कर मैं राजकोष पर बोझ नहीं डालना चाहता। इसे क्रय करना अधर्म होगा और उन्होंने मुझे चले जाने को कह दिया... युवक! बड़े ही कंजूस हैं आप के महाराणा।’’ 

इत्र बेचने वाले ने मुंह बनाते हुए कहा।

‘‘लाओ। सारा इत्र मुझे दे दो। और मूल्य ले लो।’’

अनोखा कंवर ने कीमत अदा की। इत्र की शीशियां खोलता गया और अपने घोड़े पर उंड़ेलता गया। उसकी यह हरकत महाराणा से भी छिपी न रही। उसे बुलाया गया। ऐसा करने का कारण पूछा।

अनोखा कंवर का उत्तर था, ‘‘यदि मैं इसे न खरीदता तो वह अपने राज्य में लोगों से कहता कि उदयपुर के राणा बड़े कंजूस हैं। यह ठीक न होता। हां! यह इत्र मेरे किसी काम का भी नहीं इसलिए ही इसे घोड़े पर उड़ेल दिया। क्यों उठाए फिरता इसे।’’

महाराणा ने सिंहासन से उठ कर उसे गले से लगाते हुए कहा, ‘‘हमें तुम पर गर्व है।’’  —सुदर्शन भाटिया

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