Edited By Jyoti,Updated: 12 Jan, 2022 05:08 PM
बंदरों का सरदार अपने बच्चे के साथ किसी बड़े पेड़ की डाली पर बैठा हुआ था, बच्चा बोला, ‘‘मुझे भूख लगी है, क्या आप मुझे खाने के लिए कुछ पत्तियां दे सकते हैं?’’
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बंदरों का सरदार अपने बच्चे के साथ किसी बड़े पेड़ की डाली पर बैठा हुआ था, बच्चा बोला, ‘‘मुझे भूख लगी है, क्या आप मुझे खाने के लिए कुछ पत्तियां दे सकते हैं?’’
बंदर बोला, ‘‘मैं दे तो सकता हूं, पर अच्छा होगा तुम खुद ही अपने लिए पत्तियां तोड़ लो।’’ बच्चा उदास होते हुए बोला, ‘‘लेकिन मुझे अच्छी पत्तियों की पहचान नहीं है।’’
बंदर बोला, ‘‘इस पेड़ को देखो, तुम चाहो तो नीचे की डालियों से पुरानी-कड़ी पत्तियां चुन सकते हो या ऊपर की पतली डालियों पर उगी ताजी-नर्म पत्तियां तोड़ कर खा सकते हो।’’ बच्चा बोला, ‘‘यह ठीक नहीं है, भला ये अच्छी पत्तियां नीचे क्यों नहीं उग सकतीं, ताकि सभी लोग आसानी से उन्हें खा सकें?’’ बंदर बोला, ‘‘यही तो बात है, अगर वे सबके पहुंच में होतीं तो उनकी उपलब्धता कहां हो पाती। उनके बढ़ने से पहले ही उन्हें तोड़ कर खा लिया जाता।’’
बच्चे ने कहा, ‘‘लेकिन इन पतली डालियों पर चढऩा खतरनाक हो सकता है, डाली टूट सकती है, मेरा पांव फिसल सकता है, मैं नीचे गिर कर चोटिल हो सकता हूं।’’
बंदर बोला, ‘‘सुनो बेटा, एक बात याद रखो, हम अपने दिमाग में खतरे की जो तस्वीर बनाते हैं अक्सर खतरा उससे कहीं कम होता है।’’ बच्चे ने पूछा, ‘‘पर ऐसा है तो हर एक बंदर उन डालियों से ताजी पत्तियां तोड़कर क्यों नहीं खाता?’’
बंदर कुछ सोच कर बोला, ‘‘क्योंकि, ज्यादातर बंदरों को डर कर जीने की आदत पड़ चुकी होती है, वे सड़ी-गली पत्तियां खाकर उसकी शिकायत करना पसंद करते हैं, पर कभी खतरा उठा कर उनको पाने की कोशिश नहीं करते, पर तुम ऐसा मत करना, अपने डर को जीतो और जाओ ऐसी जिंदगी जियो जो तुम सचमुच जीना चाहते हो।’’
बच्चा समझ चुका था कि उसे क्या करना है, उसने तुरन्त ही अपने डर को पीछे छेड़ा और ताजी-नर्म पत्तियों से अपनी भूख मिटाई।