Edited By Jyoti,Updated: 12 Jan, 2022 07:05 PM
उन दिनों सुभाष चंद्र बोस स्कूल में पढ़ते थे। वह सभी विषयों में तो बहुत तेज थे लेकिन बंगला भाषा पर उनकी पकड़ कम थी। एक दिन बंगाल के एक अध्यापक ने सभी विद्याॢथयों को एक निबंध लिखने के लिए
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उन दिनों सुभाष चंद्र बोस स्कूल में पढ़ते थे। वह सभी विषयों में तो बहुत तेज थे लेकिन बंगला भाषा पर उनकी पकड़ कम थी। एक दिन बंगाल के एक अध्यापक ने सभी विद्याॢथयों को एक निबंध लिखने के लिए दिया। सुभाष चंद्र क्योंकि बंगला भाषा में कमजोर थे इसलिए उनके निबंध में अनेक कमियां निकलीं। सभी विद्यार्थी उनका मजाक उड़ाने लगे।
एक विद्यार्थी सुभाष से बोला, ‘‘वैसे तो तुम बड़े देशभक्त बनते हो मगर अपनी ही भाषा पर तुम्हारी पकड़ कमजोर है।’’ सुभाष को यह बात चुभ गई।
अब उन्होंने बंगला भाषा के व्याकरण का अध्ययन करना आरंभ कर दिया। उन्होंने दृढ़ संकल्प किया कि अब वह बंगला भाषा में केवल पास होने लायक अंक ही नहीं लाएंगे बल्कि उसमें अव्वल होने का भी प्रयास करेंगे। उन्होंने बंगला भाषा को सीखने के लिए लगातार मेहनत करना शुरू कर दिया।
कुछ समय बाद सुभाष ने बंगला भाषा में महारत हासिल कर ली। वाॢषक परीक्षाएं निकट थीं। अधिकतर विद्यार्थी बालक सुभाष को देख कर बोलते, ‘‘चाहे तुम कक्षा में प्रथम आ जाओ किन्तु बंगला भाषा में पास हुए बिना तुम सर्वप्रथम नहीं कहला सकते।’’
वाॢषक परीक्षाएं हुईं। परिणाम के दिन जब शिक्षक ने कक्षा में प्रथम आने वाले विद्यार्थी के रूप में सुभाष का नाम पुकारा तो उनसे ईष्र्या करने वाले विद्यार्थी ने कहा, ‘‘भला यह कैसे संभव है? बंगला में तो यह मुश्किल से पास होता है। फिर यह सर्वप्रथम कैसे हो सकता है?’’
इस पर शिक्षक मुस्कुरा कर बोले कि खुशी तो इसी बात की है कि इस बार सुभाष ने सभी विषयों के साथ बंगला में भी सबसे अधिक अंक प्राप्त किए हैं। यह सुनकर सभी विद्यार्थी दंग रह गए। सुभाष ने छात्रों से कहा, ‘‘यदि लगन और एकाग्रता हो तो इंसान सब कुछ हासिल कर सकता है।’’