Edited By Jyoti,Updated: 02 Mar, 2022 04:37 PM
मगध के एक धनी व्यापारी ने काफी धन कमाया। चारों ओर उसकी समृद्धि की चर्चाएं होने लगीं। उसे अपनी सम्पन्नता पर इतना गर्व हो गया कि वह अपने घर वालों से भी स्वाभाविक
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मगध के एक धनी व्यापारी ने काफी धन कमाया। चारों ओर उसकी समृद्धि की चर्चाएं होने लगीं। उसे अपनी सम्पन्नता पर इतना गर्व हो गया कि वह अपने घर वालों से भी स्वाभाविक मानवीय व्यवहार भूल गया। उनसे भी उद्दंडता करने लगा।
इसका परिणाम यह हुआ कि उसके लड़के भी उद्दंड और अहंकारी हो गए। पिता-पुत्रों में ही ठनने लगी। घर नरक बन गया। परेशान होकर व्यापारी ने महात्मा बुद्ध की शरण ली। उसने बुद्ध से कहा, ‘‘मुझे परिवार के नरक से मुक्ति दिलाइए। मैं भिक्षु होना चाहता हूं।’’
बुद्ध ने थोड़ी देर तक सोचा, फिर बोले, ‘‘वत्स, तुम जैसा संसार चाहते हो, सबसे पहले खुद उसके उपयुक्त आचरण करो। कुछ समय बाद तुम पाओगे कि तुम्हारा घर स्वर्ग बन गया है।’’
व्यापारी बुद्ध के कथन पर चिंतन करता हुआ घर लौटा। उसने अगले ही दिन से अपना आचरण बदलना शुरू कर दिया। उसने अपने चरित्र में विनम्रता और सहनशीलता आदि गुण विकसित किए। उसके व्यवहार में आए परिवर्तन ने उसके घर के लोगों को भी बदल दिया। उसका घर स्वर्ग बन गया जो कभी उसे नरक दिखाई पड़ता था।