Edited By Jyoti,Updated: 24 Mar, 2022 03:40 PM
ऋषिकेश के एक प्रसिद्ध महात्मा बहुत वृद्ध हो चले थे और उनका अंत निकट था। एक दिन उन्होंने सभी शिष्यों
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ऋषिकेश के एक प्रसिद्ध महात्मा बहुत वृद्ध हो चले थे और उनका अंत निकट था। एक दिन उन्होंने सभी शिष्यों को बुलाया और कहा, ‘‘प्रिय शिष्यो मेरा शरीर जीर्ण हो चुका है और अब मेरी आत्मा बार-बार मुझे इसे त्यागने को कह रही है और मैंने निश्चय किया है कि आज के दिन जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश कर जाएगा तब मैं इहलोक त्याग दूंगा।’’
आखिरी संदेश गुरु की वाणी सुनते ही शिष्य घबरा गए, शोक-विलाप करने लगे, पर गुरु जी ने सबको शांत रहने और इस अटल सत्य को स्वीकारने के लिए कहा। कुछ देर बाद जब सब चुप हो गए तो एक शिष्य ने पूछा, ‘‘गुरुजी, क्या आप आज हमें कोई शिक्षा नहीं देंगे?’’
‘‘अवश्य दूंगा।’’ गुरु जी बोले, ‘‘मेरे निकट आओ और मेरे मुख में देखो।’’
एक शिष्य निकट गया और देखने लगा।
‘‘बताओ, मेरे मुख में क्या दिखता है, जीभ या दांत?’’
‘‘उसमें तो बस जीभ दिखाई दे रही है।’’ शिष्य बोला।
फिर गुरु जी ने पूछा, ‘‘अब बताओ दोनों में पहले कौन आया था।’’
‘‘पहले तो जीभ ही आई थी।’’
एक शिष्य बोला।
‘‘अच्छा दोनों में कठोर कौन था?’’ गुरु जी ने पुन: एक प्रश्र किया।
‘‘जी, कठोर तो दांत ही था।’’ एक शिष्य बोला।
‘‘दांत जीभ से कम आयु का और कठोर होते हुए भी उससे पहले ही चला गया पर विनम्र और संवेदनशील जीभ अभी भी जीवित है। शिष्यो, इस जग का यही नियम है, जो क्रूर है, कठोर है और जिसे अपनी ताकत या ज्ञान का घमंड है उसका जल्द ही विनाश हो जाता है, अत: तुम सब जीभ की भांति सरल, विनम्र और प्रेमपूर्ण बनो और इस धरा को अपने सत्कर्मों से सींचो, यही मेरा आखिरी संदेश है।’’
और इन्हीं शब्दों के साथ गुरु जी परलोक सिधार गए। —संतोष चतुर्वेदी