Motivational Concept: गुरु रबीन्द्रनाथ की तन्मयता

Edited By Jyoti,Updated: 04 Jun, 2022 10:13 AM

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एक बार शांति निकेतन के अपने कक्ष में गुरु रबीन्द्रनाथ टैगोर कविता लिख रहे थे। कविता लिखने में वह इतने तल्लीन थे कि उन्हें आभास ही नहीं हुआ कि कोई उनके कक्ष में दबे पांव दाखिल हो गया है। वह एक डाकू था

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एक बार शांति निकेतन के अपने कक्ष में गुरु रबीन्द्रनाथ टैगोर कविता लिख रहे थे। कविता लिखने में वह इतने तल्लीन थे कि उन्हें आभास ही नहीं हुआ कि कोई उनके कक्ष में दबे पांव दाखिल हो गया है। वह एक डाकू था, जो किसी अज्ञात द्वेषवश उनकी हत्या के उद्देश्य से आया था। निकट पहुंच कर वह तेज आवाज में बोला, ‘‘आज मैं तेरी प्राणलीला समाप्त करके ही जाऊंगा।’’

डाकू की आवाज सुनकर रबीन्द्रनाथ का ध्यान उस ओर गया। देखा, बगल में डाकू हाथ में एक धारदार हथियार लिए खड़ा है और उन पर वार की ताक में है। वह बोले, ‘‘तनिक ठहरो, एक सुन्दर भाव उत्पन्न हुआ है, उसे मैं कविता में उतार लूं, उसके बाद तुम मुझे मार देना। मैं तुम्हें नहीं रोकूंगा। आनंदपूर्वक अपने प्राण दे दूंगा।’’ इतना कह कर वह फिर से काव्य लेखन में तल्लीन हो गए। डाकू उन्हें देख हतप्रभ रह गया। रबीन्द्रनाथ काव्य लेखन में ऐसे डूबे कि उन्हें भान ही नहीं रहा कि बगल में उनकी हत्या के प्रयोजन से आया डाकू खड़ा है।

जब कविता पूरी हुई, तो गुरुदेव को डाकू का ख्याल आया। उसकी ओर देखकर वे बोले, ‘‘विलम्ब के लिए क्षमा करना। कविता लिखने की तल्लीनता में मैं तुम्हारे बारे में भूल ही गया। अब तुम अपना प्रयोजन सिद्ध कर सकते हो।’’ 

उनके इतना कहते ही डाकू गुरुदेव के चरणों में गिर पड़ा। उसकी आंखों से आंसू बहने लगे। हत्या का विचार त्याग कर वह उनसे क्षमायाचना करने लगा।
 

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