Edited By Jyoti,Updated: 05 Jun, 2022 11:23 AM
अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन संसद में भाषण देने जा रहे थे। मार्ग के किनारे एक बकरी के बच्चे को उन्होंने कीचड़ में फंसा देखा। वह जीवन और मृत्यु की
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अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन संसद में भाषण देने जा रहे थे। मार्ग के किनारे एक बकरी के बच्चे को उन्होंने कीचड़ में फंसा देखा। वह जीवन और मृत्यु की कशमकश में फंसा था। कीचड़ से निकलने की चेष्टा में वह उसमें और धंसता जा रहा था।
लिंकन ने एक प्राणी को जीवन के लिए संघर्ष करते हुए देखा तो उनका हृदय कांप उठा। उनके कदम आगे न बढ़ सके। वह कीचड़ में कूद पड़े और उस नन्ही जान को बचा लिया। कीचड़ से मुक्त होकर बकरी का बच्चा छलांगें भरता हुआ भाग खड़ा हुआ। लिंकन के हृदय को बहुत सुख मिला।
उनके वस्त्र कीचड़ से भर गए थे। उनके पास इतना समय नहीं था कि वह घर लौट कर वस्त्र बदलें। उन्हीं वस्त्रों में वह संसद पहुंच गए। कीचड़ भरे वस्त्रों में राष्ट्रपति को देख कर संसद सदस्य व्यंग्यपूर्वक हंस पड़े। लिंकन ने उनकी मुस्कान का उत्तर मुस्कान से ही दिया। इससे सदस्य झेंप गए। एक सदस्य ने पूछा, ‘‘महामहिम, ऐसे वस्त्रों के साथ संसद में आते हुए आपको शर्म नहीं आई?’’
लिंकन ने उत्तर दिया, ‘‘मैं साफ-सुथरे वस्त्रों के साथ संसद में आता तो मुझे शर्म आती लेकिन उस अवस्था में आता तो एक प्राणी के प्राण खो जाते या फिर मैं समय पर संसद नहीं पहुंच पाता।’’
दूसरे दिन राष्ट्रपति के उक्त कार्य पर अमेरिका भर में चर्चाएं हुईं।
लिंकन के मित्रों ने उनसे कहा, ‘‘मित्र! तुम तो करुणा के अवतार हो। तुमने अपने वस्त्रों की परवाह न करके एक प्राणी के (एक तुच्छ समझे जाने वाले प्राणी के) प्राण बचाए।’’
लिंकन बोले, ‘‘दरअसल दोस्तों! मैंने यह सब उसके लिए नहीं, बल्कि स्वयं के लिए किया। स्वयं के लिए तो कोई भी व्यक्ति कुछ भी कर सकता है।’’
मित्रों ने पूछा, ‘‘स्वयं के लिए कैसे?’’
लिंकन ने स्पष्ट किया, ‘‘बकरी के बच्चे को छटपटाते देख कर मैं स्वयं छटपटा उठा। अपनी छटपटाहट मिटाने के लिए मैंने उसे कीचड़ से निकाला। यदि मैं अपनी आत्मा का गला घोंटकर वहां से चला जाता तो मुझे नींद नहीं आती, कसक रहती, मैं छटपटाता रहता। अत: जो मैंने किया स्वयं के लिए किया है।’’
अब्राहम लिंकन की बात सुनकर उनके सभी मित्र उनकी महानता के समक्ष नतमस्तक हो गए।