Edited By Jyoti,Updated: 10 Jun, 2022 05:15 PM
अंकमाल नामक एक युवक भगवान बुद्ध के सामने उपस्थित हुआ और बोला, ‘‘भगवन! मैं संसार की कुछ सेवा करना चाहता हूं, आप मुझे जहां भी भेजना चाहें भेज दें ताकि मैं लोगों को धर्म का रास्ता दिखा सकूं।’’
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अंकमाल नामक एक युवक भगवान बुद्ध के सामने उपस्थित हुआ और बोला, ‘‘भगवन! मैं संसार की कुछ सेवा करना चाहता हूं, आप मुझे जहां भी भेजना चाहें भेज दें ताकि मैं लोगों को धर्म का रास्ता दिखा सकूं।’’
बुद्ध बोले, ‘‘तात! संसार को कुछ देने के पहले अपने पास कुछ होना आवश्यक होता है, जबकि तुम्हारे पास ऐसा कुछ भी नहीं है, जाओ पहले अपनी योग्यता बढ़ाओ फिर संसार की भी सेवा करना।’’
अंकमाल बाण बनाने से लेकर चित्रकला तक जितनी भी कलाएं हो सकती हैं उन सबका उसने 10 वर्ष तक कठोर अभ्यास किया। अंकमाल इस सब में इतना अच्छा हो गया कि सारे देश में उसकी ख्याति फैल गई।
अंकमाल तथागत की सेवा में उपस्थित हुआ। उसने कहा, ‘‘भगवन! अब मैं कई कलाओं को जानता हूं और अब मैं प्रत्येक व्यक्ति को कुछ न कुछ सिखा सकता हूं।’’
भगवान बुद्ध मुस्कुराए और बोले, ‘‘अभी तो तुम कलाएं सीख कर आए हो, योग्यता की परख कर लेने दो, तब उन पर अभिमान करना।’’
अगले दिन भगवान बुद्ध एक साधारण नागरिक का भेस बनाकर अंकमाल के पास गए और उसे अकारण खरी-खोटी सुनाने लगे। अंकमाल क्रुद्ध होकर मारने दौड़ा तो बुद्ध वहां से मुस्कुराते हुए वापस लौट पड़े।
उसी दिन दो बौद्ध श्रमण भेस बदल कर अंकमाल के समीप जाकर बोले, ‘‘आचार्य! आपको सम्राट हर्ष ने मंत्री पद देने की इच्छा व्यक्त की है। क्या आप उसे स्वीकार करेंगे’’
अंकमाल को लोभ आ गया, उसने कहा, ‘‘हां हां, क्यों नहीं, अभी चलो।’’ दोनों श्रमण भी मुस्कुरा दिए और चुपचाप लौट आए।
सायंकाल अंकमाल को बुद्ध देव ने पुन: बुलाया और पूछा, ‘‘वत्स! क्या तुमने क्रोध और लोभ पर विजय की विद्या भी सीखी है?’’
अंकमाल को दिनभर की घटनाएं याद हो आईं। उसने लज्जा से सिर झुका लिया और वह उस दिन से आत्मविजय की साधना में संलग्न हो गया।