Edited By Jyoti,Updated: 17 Jun, 2022 01:26 PM
श्रावस्ती के 2 युवकों में बड़ी प्रगाढ़ मैत्री थी। दोनों ही दूसरों की जेब काटने का धंधा करते थे। एक दिन भगवान बुद्ध का एक स्थान पर प्रवचन चल रहा था। अच्छा अवसर जानकर दोनों मित्र वहीं जा पहुंचे।
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श्रावस्ती के 2 युवकों में बड़ी प्रगाढ़ मैत्री थी। दोनों ही दूसरों की जेब काटने का धंधा करते थे। एक दिन भगवान बुद्ध का एक स्थान पर प्रवचन चल रहा था। अच्छा अवसर जानकर दोनों मित्र वहीं जा पहुंचे।
उनमें से एक को भगवान बुद्ध के प्रवचन बहुत अच्छे लगे और वह ध्यानावस्थित होकर उन्हें सुनने लगा। दूसरे ने कई जेबें इस बीच साफ कर लीं। शाम को दोनों घर लौटे। एक के पास धन था, दूसरे के पास सद्विचार।
जेबकतरे ने व्यंग्य करते हुए कहा, ‘‘तू बड़ा मूर्ख है, जो दूसरों की बातों से प्रभावित हो गया। अब इस पांडित्य का ही भोजन पका और उससे पेट भर।’’
अपने पूर्व कृत-कर्मों से दुखी दूसरा जेबकतरा बुद्ध के पास लौटा और उनसे सब हाल कहा।
बुद्ध ने समझाया, ‘‘वत्स! जो अपनी बुराइयों को स्वीकार कर उन्हें अपने अंदर से निकालने का प्रयत्न करता है वही सच्चा पंडित है, पर जो बुराई करता हुआ भी पंडित बनता है वही मूर्ख है।’’
उन्होंने कहा कि अगर तुम सारे दुखों से पार होना चाहते हो तो अपने मन को मोह और वासनाओं से ऊपर उठा कर प्रेम और संतोष से भर दो क्योंकि जिसके हृदय में प्रेम और संतोष का दीया जल गया उसके मन से फिर मोह और वासना का सारा अंधकार ही दूर हो जाता है।