माया में रमा है सारा संसार, त्याग से मिलेगी मुक्ति

Edited By Jyoti,Updated: 28 Jul, 2022 11:37 AM

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एक किसान कबीरदास जी का सत्संग सुनने गया। कबीरदास ने उससे कहा कि कुछ समय ईश्वर की आराधना में व्यतीत करो। इस पर किसान ने जवाब दिया, ‘‘अभी मेरे बच्चे छोटे हैं। जब वे बड़े हो जाएंगे तो मेरी जिम्मेदारी कम हो जाएगी तब मैं अवश्य भजन-पूजन करूंगा।’’

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एक किसान कबीरदास जी का सत्संग सुनने गया। कबीरदास ने उससे कहा कि कुछ समय ईश्वर की आराधना में व्यतीत करो। इस पर किसान ने जवाब दिया, ‘‘अभी मेरे बच्चे छोटे हैं। जब वे बड़े हो जाएंगे तो मेरी जिम्मेदारी कम हो जाएगी तब मैं अवश्य भजन-पूजन करूंगा।’’

समय बीता। किसान के लड़के जवान हो गए। वे काम में उसका हाथ बंटाने लगे। वह फिर एक दिन कबीरदास के सत्संग में पहुंचा। कबीरदास ने उसे उसकी कही बात याद दिलाई। इस पर किसान बोला, ‘‘बच्चों का विवाह हो जाए तो मैं जिम्मेदारियों से पूर्ण रूप से मुक्त होकर भजन-पूजन करूंगा।’’

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कुछ समय के बाद किसान के लड़कों का विवाह भी हो गया, लेकिन किसान को भजन-पूजन का समय नहीं मिला। पूछने पर उसने कहा कि पोतों का मुंह देखने की बड़ी इच्छा है। उसके बाद तो भजन ही करना है। समय के साथ उसे पोतों का सुख भी मिला। तब फिर से कबीरदास जी ने उसे टोका। उसने उत्तर दिया, ‘‘महाराज! पोतों के साथ खेलने से समय ही नहीं मिलता। भजन कब करूं? अब ये थोड़े बड़े हो जाएं तो अवश्य ही भजन में अपना समय लगाऊंगा।’’ 

इसी सांसारिक माया में रमे किसान की एक दिन मृत्यु हो गई और इस तरह किसान जीवन भर भजन-पूजन से दूर ही रहा। अत: हमें पूजा-पाठ व अच्छे काम में टाल-मटोल नहीं करना चाहिए।

 

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