Mahatma Gandhi: अपने सुख के लिए न छीनें किसी का ऐशो-आराम

Edited By Jyoti,Updated: 03 Aug, 2022 10:37 AM

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महात्मा गांधी साथियों के साथ रेल से यात्रा कर रहे थे। जिस डिब्बे में गांधी जी बैठे थे, उसकी छत थोड़ी टूटी हुई थी। बरसात का मौसम था। जब बारिश शुरू हुई तो छत टपकने लगी। पानी गिरता देखकर उनके साथियों ने बापू जी का सामान और कागज संभालकर एक ओर रख

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महात्मा गांधी साथियों के साथ रेल से यात्रा कर रहे थे। जिस डिब्बे में गांधी जी बैठे थे, उसकी छत थोड़ी टूटी हुई थी। बरसात का मौसम था। जब बारिश शुरू हुई तो छत टपकने लगी। पानी गिरता देखकर उनके साथियों ने बापू जी का सामान और कागज संभालकर एक ओर रख दिए। अगले स्टेशन पर एक साथी गार्ड के पास पहुंचा और डिब्बे की हालत बयान की।

गार्ड तुरन्त डिब्बे में आया और बोला, ‘‘बापू जी, आपके लिए दूसरा डिब्बा खाली करवाने का आदेश दे दिया है। आप उसमें बैठ जाइए।’’ 

गांधी जी ने प्रश्र किया, ‘‘उस डिब्बे के यात्री कहां बैठेंगे?’’

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गार्ड ने कहा, ‘‘हमारे पास और कोई डिब्बा नहीं है इसलिए उस डिब्बे के यात्री इस डिब्बे में बैठ जाएंगे।’’

गार्ड की बात सुनकर बापू बहुत दुखी हुए और उन्होंने कहा, ‘‘मैं सुख से बैठूं और मेरे लिए सुख से बैठे हुए लोग परेशान हों, यह मेरे लिए लज्जा की बात है। पहले वे सुख से बैठेंगे, तब मैं बैठूंगा। मैं उनके डिब्बे में जाऊंगा, ऐसा कभी नहीं हो सकता’’ 

बापू ने कहा।

गार्ड ने उनके दृढ़ निश्चय को समझ लिया और क्षमा मांगी।
 

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