Edited By Jyoti,Updated: 12 Aug, 2022 11:52 AM
बात उन दिनों की है जब अमरीका में दासप्रथा चरम पर थी। एक धनाढ्य ने बेंगर नाम दास को खरीदा। बेंगर न केवल परिश्रमी था बल्कि गुणवान भी था। वह धनी व्यक्ति बेंगर से पूर्णरूपेण संतुष्ट था और उस पर विश्वास भी किया करता था। एक दिन धनाढ्य व्यक्ति बेंगर को...
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बात उन दिनों की है जब अमरीका में दासप्रथा चरम पर थी। एक धनाढ्य ने बेंगर नाम दास को खरीदा। बेंगर न केवल परिश्रमी था बल्कि गुणवान भी था। वह धनी व्यक्ति बेंगर से पूर्णरूपेण संतुष्ट था और उस पर विश्वास भी किया करता था। एक दिन धनाढ्य व्यक्ति बेंगर को लेकर दासमंडी गया, जहां लोगों का जानवरों की भांति कारोबार होता था।
उस धनी ने एक और दास खरीदने की इच्छा जाहिर की तो बेंगर ने एक बूढ़े की ओर इशारा करते हुए कहा, मालिक! उस बूढ़े को खरीद लीजिए।
बेंगर के साथ उस बूढ़े को खरीद कर धनी घर चला आया। बूढ़े के साथ बेंगर बहुत खुश था। वह उसकी भली-भांति सेवा किया करता था। एक दिन उस धनी ने बेंगर को सेवा करते देखा तो इसका कारण पूछा।
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बेंगर ने बताया-मालिक! बूढ़ा मेरा कुछ भी नहीं लगता बल्कि यह मेरा सबसे बड़ा शत्रु है। इसी ने मुझे बचपन में गुलाम के रूप में बेच डाला था। बाद में यह खुद भी पकड़ा गया और दास बन गया। उस दिन मैंने इस बूढ़े को दासमंडी में पहचान लिया था।
मैं इसकी सेवा इसलिए करता हूं कि मेरी मां ने मुझे शिक्षा दी थी कि शत्रु यदि निर्वस्त्र हो तो उसे वस्त्र दो, भूखा हो तो रोटी दो, प्यासा हो तो पानी पिलाओ। इसलिए मैं इसकी सेवा करता हूं। इतना सुनकर वह धनाढ्य व्यक्ति बड़ा प्रसन्न हुआ और उसने उसी दिन से बेंगर को स्वतंत्र कर दिया।