Edited By Jyoti,Updated: 16 Aug, 2022 11:24 AM
एक सम्राट बड़ा ही दयालु प्रकृति का था। वह एक बार घूमने के लिए जंगल में पहुंचा। उसने देखा जंगल में एक आश्रम है और उसमें सैंकड़ों संन्यासी रहते हैं। सम्राट के मन में यह विचार आया कि ये साधु-संन्यासी यदि बीमार हो जाएंगे तो इनकी सेवा कौन करेगा? मेरा...
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एक सम्राट बड़ा ही दयालु प्रकृति का था। वह एक बार घूमने के लिए जंगल में पहुंचा। उसने देखा जंगल में एक आश्रम है और उसमें सैंकड़ों संन्यासी रहते हैं। सम्राट के मन में यह विचार आया कि ये साधु-संन्यासी यदि बीमार हो जाएंगे तो इनकी सेवा कौन करेगा? मेरा कत्र्तव्य है कि मैं इनके लिए चिकित्सक की व्यवस्था कर दूं।
उसने एक वैद्य को आश्रम में रहने के लिए भेजा। दिन पर दिन बीतते चले गए, किंतु कोई भी संन्यासी उनके पास दवा लेने के लिए नहीं पहुंचा। वह सोचने लगा कि मैं यहां आया था इन संन्यासियों की सेवा करने के लिए किंतु यहां कोई भी सेवा लेने वाला नहीं है।
धीरे-धीरे उसका धैर्य जवाब देने लगा। प्रतीक्षा करते-करते दीर्घकाल व्यतीत हो गया। किंतु कोई भी संन्यासी उनके पास नहीं पहुंचा।
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अंत में वैद्य परेशान होकर एक दिन आश्रम के मुखिया के पास पहुंचा और नम्र निवेदन करते हुए कहा-मुझे सम्राट ने आप संतों की सेवा के लिए भेजा था, पर आज तक कोई भी साधु मेरे पास नहीं आया है।
इसका क्या रहस्य है? आश्रम के स्वामी ने कहा-वैद्य जी! आपने तथा राजा ने हमें नहीं पहचाना। सुनो! हमारे अच्छे स्वास्थ्य का रहस्य- हम लोगों को जब तक बहुत तेज भूख नहीं सताती तब तक भोजन नहीं करते और भोजन करने बैठते हैं तो उस समय भी भरपेट नहीं खाते। कुछ भूख रहते ही भोजन ग्रहण करना बंद कर देते हैं। वैद्य समझ गया कि इनके स्वास्थ्य का रहस्य क्या है?
वह वहां से चल दिया कि यहां पर कभी भी कोई बीमार नहीं पड़ेगा। —आचार्य ज्ञानचंद्र