Edited By Jyoti,Updated: 18 Aug, 2022 10:29 AM
कुछ परोपकारी व्यक्ति ऐसे होते हैं, जो दूसरों के प्राणों की रक्षा के लिए अपने प्राण संकट में डाल देते हैं। बात उस समय की है जब पागल कुत्ते के काटने पर किसी प्रकार की दवाई या इंजैक्शन नहीं था। उस समय यदि किसी को पागल कुत्ता काट लेता था तो काटे हुए...
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कुछ परोपकारी व्यक्ति ऐसे होते हैं, जो दूसरों के प्राणों की रक्षा के लिए अपने प्राण संकट में डाल देते हैं। बात उस समय की है जब पागल कुत्ते के काटने पर किसी प्रकार की दवाई या इंजैक्शन नहीं था। उस समय यदि किसी को पागल कुत्ता काट लेता था तो काटे हुए स्थान पर लोहे की गर्म सलाख दागी जाती थी। यह चिकित्सा प्रणाली भयानक थी। इस प्रणाली से कुछ ही लोग बच पाते थे। वैज्ञानिक लुई पाश्चर ने इस रोग की चिकित्सा के लिए औषधि खोज निकालने का दृढ़ संकल्प लिया।
उन्होंने कुछ पागल कुत्तों की लार एकत्र की। लार एकत्र करने का काम भी जोखिम भरा ही था क्योंकि लार एकत्र करते समय कुत्ते के काटने का भय बना रहता था। फिर भी उन्होंने खतरे की चिंता किए बिना लार एकत्र की और लार का परीक्षण करके लुई ने उसके कीटाणुओं का पता लगाया फिर उनके प्रभाव समाप्त करने वाली औषधि तैयार की।
अब समस्या यह थी कि इसका परीक्षण किस पर किया जाए? बिना औषधि के परीक्षण के यह निश्चित नहीं हो सकता था कि दवाई कितनी प्रभावशाली है।
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अंतत: उन्होंने स्वयं ही जोखिम उठाया। उन्होंने स्वयं ही पागल कुत्ते की लार चाटी और फिर अपने द्वारा निर्मित दवाई पी। दवाई का प्रभाव सकारात्मक रहा। तत्पश्चात उन्होंने एक नौ वर्षीय बालक को भी टीका लगाकर ठीक किया।
इस प्रकार लुई पाश्चर ने एक ऐसी बीमारी के लिए औषधि खोज निकाली जिसके लिए अभी तक इलाज कर पाना संभव नहीं था। इस प्रकार लुई पाश्चर ने अपने प्राण जोखिम में डालकर मानवता का कल्याण किया। —आचार्य ज्ञानचंद्र