प्रेरक प्रसंग: विनाश छोड़ो, निर्माण करो

Edited By Jyoti,Updated: 12 May, 2021 04:31 PM

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अंगुलिमाल एक कुख्यात, दुर्दांत तथा निर्दयी डाकू था। जो पांधि जंगल में मिलता उसे लूटता, जान से मार कर उसकी अंगुलि अपनी माला में पिरो लेता। एक बार महात्मा बुद्ध भ्रमण

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अंगुलिमाल एक कुख्यात, दुर्दांत तथा निर्दयी डाकू था। जो पांधि जंगल में मिलता उसे लूटता, जान से मार कर उसकी अंगुलि अपनी माला में पिरो लेता। एक बार महात्मा बुद्ध भ्रमण करते हुए उस जंगल के रास्ते निकले। अंगुलिमाल ने ललकारा तथा लूटने और मारने के लिए कटार निकाल ली। महात्मा बुद्ध शांत खड़े रहे, न भय न भागने का प्रयत्न। अंगुलिमाल निकट आया। बुद्ध सहज भाव से बोले : वह वृक्ष का  पत्ता तोड़ कर लाओ। अंगुलिमाल क्रोध से लाल पीला हुआ, पर बरबस पेड़ से पत्ता तोड़ लाया। महात्मा बुद्ध बोले, ‘‘तो तुम इसे इसी समय वापस वृक्ष में जोड़ दो।’’

अंगुलिमाल जोर से गरजा, ‘‘क्या कह रहे हो? यह कैसे जुड़ सकता है?’’

महात्मा बुद्ध ने कहा, ‘‘बस! केवल निरपराधियों को मारकर जीवन छीनना ही जानते हो। जो जीवन तुम दे नहीं सकते उसे लेने का क्या अधिकार है? विनाश छोड़ो, निर्माण करो।’’

यह शीतल वाणी अंगुलिमाल के तपते अपराधी मन पर बर्फ का काम कर गई। उसने कटार फैंक दी, महात्मा बुद्ध के चरणों में गिर गया। बाद में उसने बुद्ध धर्म की दीक्षा भी ली तथा एक भद्र पुरुष का जीवन व्यतीत किया।

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