मानो या न मानो- डर के आगे जीत है...

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 07 Mar, 2021 09:05 AM

motivational story

चानपा बड़ी देर से चट्टान की ओट में खड़ा बारिश के रुकने का इंतजार कर रहा था। अभी एक घंटा पहले आसमान बिल्कुल साफ था। चानपा को उम्मीद थी कि वह अंधेरा होते-होते घर पहुंच जाएगा पर बादल ऐसे घिरे कि दो कदम चलना भी मुश्किल हो गया।

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Inspirational Story- चानपा बड़ी देर से चट्टान की ओट में खड़ा बारिश के रुकने का इंतजार कर रहा था। अभी एक घंटा पहले आसमान बिल्कुल साफ था। चानपा को उम्मीद थी कि वह अंधेरा होते-होते घर पहुंच जाएगा पर बादल ऐसे घिरे कि दो कदम चलना भी मुश्किल हो गया।

वह बार-बार आसमान की ओर लाचार दृष्टि से ताक कर ईश्वर से प्रार्थना कर रहा था। उसे पता था कि घंटा भर पानी और न थमा तो वापस जाना असंभव हो जाएगा। फिसलन भरे पहाड़ी रास्तों पर अंधेरे में चढ़ना काल को दावत देना होगा। चानपा था भी डरपोक। अंधेरे में जाते उसकी जान निकलती थी। वह बुरी तरह घबराया हुआ था।

बहुत दिनों के बाद चानपा मैदानी क्षेत्र में लगने वाले साप्ताहिक बाजार आया था। आते समय बच्चों ने खिलौने और मिठाइयां लाने की जिद की थी और पत्नी ने कोई अच्छा सा तोहफा लाने को कहा था। उसने बच्चों के लिए खेल-खिलौने तो ले लिए थे लेकिन पत्नी के लिए क्या लेकर जाए, उसे समझ नहीं आ रहा था।

पूरा बाजार छान कर भी उसे कोई ऐसी चीज नहीं मिल पा रही थी, जिसे पाकर पत्नी खुश हो जाए। जो चीजें मिल भी रही थीं, उन्हें खरीदना उसके सामर्थ्य के बाहर था। चानपा परेशान था कि लौट कर पत्नी को क्या जवाब दोगा। वह बेचारी दुखी हो जाएगी। वैसे वह सुखी ही कब थी।
जैसे-जैसे अंधेरा गहरा रहा था चानपा की घबराहट बढ़ती जा रही थी। बूंदें अभी भी पड़ रही थीं। अब यह तो तय ही हो गया था कि चानपा को रात उसी चट्टान की आड़ में गुजारनी है। हार कर वह चुपचाप बैठ गया। वह उस घड़ी को कोस रहा था जब घर से निकलना हुआ था। उसे बार-बार अपने प्यारे घर की याद आ रही थी, जहां वह इस समय लेट कर बच्चों को कहानियां सुना रहा होता था।

एक तो भूख, दूसरी ठंडक, ऊपर से डरावनी रात। बेचारे चानपा की हालत खराब हो रही थी। जरा सी खटपट पर वह अंधेरे में नजर फाड़कर देखने लगता। एक कोने में सिमटा पड़ा वह लगातार भगवान का नाम ले रहा था।

बैठे-बैठे चानपा ऊंघने लगा। नींद का झोंका आने ही वाला था कि अचानक खटपट की आवाज से उसकी आंखें खुल गईं। अंधेरे में आंखें फाड़-फाड़कर देखने पर भी उसे कुछ नजर नहीं आया।

इधर-उधर नजरें दौड़ाते हुए जब उसने बाईं ओर देखा तो वह सफेद पड़ गया। चट्टान पर एक धुंधली आकृति बैठी भीग रही थी। एकदम शांत, निश्चल। न तो उस पर बारिश का असर था और न ही ठंडी हवाओं का।
चानपा की तो जान ही निकल गई। वह डर के मारे थरथरा उठा। उसके मन में तरह-तरह के ख्याल आने लगे। उसने हिम्मत करके कांपती हुई आवाज में पूछा, ‘‘क...कौन है वहां?’’

उधर से कोई उत्तर न आया। बस, उसकी ही आवाज गहरी घटियों में गूंज कर वापस लौट आई।

चानपा अंधेरे में और सिमट गया। उसे दोरमी की बात याद आने लगी, जिसने बताया था कि ऐसी ही बारिश में रग्गी नाम के बूढ़े की घाटी में गिर कर मृत्यु हो गई थी। अब उसकी आत्मा रात के अंधेरे में रास्तों पर भटका करती है। बहुत से लोगों ने उसे देखा भी है।

यह ख्याल आते ही चानपा सिर से पैर तक थरथरा गया। वह हाथ जोड़ कर भगवान से प्रार्थना करने लगा। उसे बार-बार अपने छोटे बच्चों और प्यारी सी पत्नी की याद आ रही थी। चानपा ने एक बार फिर डरते हुए उस धुंधली आकृति की ओर देखा। उसे लगा कि यह सचमुच ही रग्गी की आत्मा है। वैसे ही घुटा सिर, वैसी ही झुकी हुई कमर।

चानपा ने डर के मारे आंखें बंद कर लीं और भगवान को याद करने लगा। इसी ऊहापोह में कब उसकी आंख लग गई पता ही न चला।
सुबह सूरज की तीखी किरणों से चानपा की नींद टूटी। आसमान बिल्कुल साफ था। लगता ही नहीं था कि रात भर घनघोर बारिश हुई थी। हड़बड़ाहट में उठते हुए उसने सबसे पहले उधर ही निगाह दौड़ाई जिधर वह आकृति बैठी थी।

वहीं जो कुछ भी था उसे देख कर उसे पहली बार अपने डरपोक स्वभाव पर हंसी आई। वहां कुछ और नहीं सिर्फ एक चट्टान पड़ी थी जो दूर से देखने पर झुककर बैठे आदमी की तरह लगती थी।

चानपा उसके पास गया उसे छूकर देखा। सचमुच, जिसे भूत समझ कर वह रात भर डरता रहा वह बाहर कहीं नहीं उसके मन में ही बैठा था। चानपा अपने आप पर हंस पड़ा। उसने उसी क्षण तय कर लिया कि आगे से वह कभी  नहीं डरेगा और मन में बैठे भय को दूर भगा देगा।
चानपा एक पहाड़ी गीत गाता हुआ घर वापस लौट चला। अब वह पहले वाला डरपोक चानपा नहीं रहा था। उसने अपने मन में बैठे डर को दूर भगा दिया था।

पत्नी ने उसे बाजार से कोई अच्छा सा तोहफा लाने को कहा था। अब वह बदले हुए चानपा के रूप में सचमुच एक अच्छा-सा तोहफा लेकर ही तो लौट रहा था।

 

 

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