Edited By Jyoti,Updated: 10 Jun, 2020 11:38 AM
एक राजा सिद्ध और विरक्त संत बाबा गरीबदास जी के दर्शनों के लिए उनकी कुटिया पर पहुंचा। राजा ने उनका अभिवादन करने के बाद कहा, ''''महाराज किसी भी वस्तु की आश्यकता हो तो बताइए
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एक राजा सिद्ध और विरक्त संत बाबा गरीबदास जी के दर्शनों के लिए उनकी कुटिया पर पहुंचा। राजा ने उनका अभिवादन करने के बाद कहा, ''महाराज किसी भी वस्तु की आश्यकता हो तो बताइए, मैं आपकी सेवा में भिजवा दूंगा।
बाबा राजा के अहंकार को भांप गए। वे बोले, ''तुम्हारे पास अपना क्या है जो मुझे दोगे?"
राजा ने कहा, ''ऐसी कौन-सी वस्तु है जो मेरे पास नहीं है। मेरा भंडार धन-धान्य तथा कीमती वस्तुओं से भरा हुआ है।
बाबा बोले, ''राजन, यह तु हारा भ्रम है कि धन-धान्य तुम्हारा है। तु हारा शरीर और सौंदर्य माता-पिता का दिया हुआ है। धन-धान्य धरती माता का दिया हुआ है। राजपाट भी तु हारा नहीं है। प्रजा के कारण ही तुम राजा हो। अत: राजपाट प्रजा का उपहार है। केवल धर्म (कर्तव्य) ही अपनी संपत्ति होता है। धर्म का पालन करते हुए यदि तुम प्रजा की सेवा और रक्षा करोगे तो युगों-युगों तक अमर रहोगे।"
संत के मुख से धन-संपत्ति और धर्म का रहस्य जानकर राजा उनके चरणों में गिर पड़े।