Edited By Jyoti,Updated: 02 Jul, 2019 10:39 AM
एक बार बेंजामिन फ्रैंकलिन ने एक धनी व्यक्ति की मेज़ पर 20 डॉलर की सोने की गिन्नियां रखते हुए कहा, ‘‘सर, आपने बुरे वक्त में मेरी सहायता की थी, मैं उसका बहुत आभारी हूं। अब मैं इतना सक्षम हो गया हूं कि आपका वह कर्ज़ लौटा सकूं। मैं उसे लौटाने आया हूं।’’
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एक बार बेंजामिन फ्रैंकलिन ने एक धनी व्यक्ति की मेज़ पर 20 डॉलर की सोने की गिन्नियां रखते हुए कहा, ‘‘सर, आपने बुरे वक्त में मेरी सहायता की थी, मैं उसका बहुत आभारी हूं। अब मैं इतना सक्षम हो गया हूं कि आपका वह कर्ज़ लौटा सकूं। मैं उसे लौटाने आया हूं।’’
बेंजामिन फ्रैंकलिन की बात सुनकर वह व्यक्ति उन्हें गौर से देखते हुए बोला, ‘‘क्षमा कीजिए, मैंने आपको पहचाना नहीं। न ही मुझे यह याद है कि मैंने किसी को 20 डॉलर उधार दिए थे।’’
बेंजामिन बोले, ‘‘मैं उन दिनों एक मुद्रणालय में समाचार पत्र छापने का काम करता था। एक दिन मेरी तबीयत खराब हो गई थी, तब मैंने आपसे 20 डॉलर लिए थे।’’
उस व्यक्ति को अपने बीते दिनों की बात याद हो आई। वह बोला, ‘‘हां, मुझे याद आ गया। लेकिन दोस्त, यह तो मानव का सहज धर्म है कि वह संकट ग्रस्त व्यक्ति की यथाशक्ति सहायता करे। इन्हें आप अपने पास ही रखें और कभी कोई जरूरतमंद व्यक्ति आपको मिले तो उसे दे दें, जिस तरह मैंने एक दिन आपको दिए थे।’’
बेंजामिन उस व्यक्ति से प्रभावित हुए और उन्हें नमस्कार कर उन गिन्नियों को अपने साथ ले आए। उसके बाद एक जरूरतमंद व्यक्ति को वे गिन्नियां दे दीं। जब उस व्यक्ति ने बेंजामिन से उन गिन्नियों को लौटाने की बात कही तो उन्होंने भी उस युवक से किसी जरूरतमंद को उन गिन्नियों को देने की बात कही। बेंजामिन ने कहा, ‘‘मैं समझूंगा कि मेरी गिन्नियां मुझे मिल गईं।’’
युवक बेंजामिन से बोला, ‘‘सर, मैं ऐसा ही करूंगा।’’
इसके बाद बेंजामिन उस युवक के कंधे पर हाथ रखते हुए बोले, ‘‘किसी जरूरतमंद की वक्त पर मदद करना ही सबसे बड़ी मदद है। अगर हम किसी की मदद करते हैं तो वह मदद सौ गुना अधिक होकर हमारे पास लौटती है और हमें कामयाब बनाती है।’’
युवक उनकी बातों से सहमत था।