पुत्र को गुणवान बनाने के लिए हर पिता को करना चाहिए ये काम

Edited By Jyoti,Updated: 24 Sep, 2019 10:06 AM

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दक्षिण भारत में एक महान संत हुए तिरुवल्लुवर। वे अपने प्रवचनों से लोगों की समस्याओं का समाधान करते थे। इसलिए उन्हें सुनने के लिए दूर-दूर से लोग उनके पास आते थे। एक बार वह एक नगर में पहुंचे।

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दक्षिण भारत में एक महान संत हुए तिरुवल्लुवर। वे अपने प्रवचनों से लोगों की समस्याओं का समाधान करते थे। इसलिए उन्हें सुनने के लिए दूर-दूर से लोग उनके पास आते थे। एक बार वह एक नगर में पहुंचे। उनके प्रवचन को सुनने के पश्चात एक सेठ ने हाथ जोड़कर निराशा का भाव लिए उनसे कहा, "गुरुवर, मैंने पाई-पाई जोड़ कर अपने इकलौते पुत्र के लिए अथाह सम्पत्ति एकत्रित की है। मगर वह गाढ़े पसीने की इस कमाई को बड़ी बेदर्दी से बुरे व्यसनों में लुटा रहा है। मैं बहुत उलझन में हूं। पता नहीं भगवान किस अपराध के कारण मेरे साथ यह अन्याय कर रहा है।"
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संत ने मुस्कुरा कर कहा, “सेठ जी, तुम्हारे पिता ने तुम्हारे लिए कितनी सम्पत्ति छोड़ी थी? सेठ बोला, "वह बहुत ही गरीब थे। उन्होंने मेरे लिए कुछ भी नहीं छोड़ा था।"

संत ने कहा, "तुम्हारे पिता ने तुम्हारे लिए कुछ भी नहीं छोड़ा। इसके बावजूद तुम इतने धनवान हो गए। इतना धन जमा करने के बावजूद तुम यह समझ रहे हो कि तुम्हारा बेटा तुम्हारे बाद गरीबी में दिन काटेगा?"
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सेठ ने आंसू भरी आंखों से कहा, "आप सच कह रहे हैं परंतु मुझसे गलती कहां हुई जो वह व्यसनों में डूबा रहता है।"

संत ने कहा, "तुम यह समझकर धन कमाने में लगे रहे कि अपनी संतान के लिए दौलत का अंबार लगा देना ही एक पिता का कर्तव्य है। इस चक्कर में तुमने अपने बेटे की पढ़ाई और संस्कारों के विकास पर कोई ध्यान नहीं दिया। पिता का पुत्र प्रति प्रथम कर्तव्य यही है कि वह उसे अच्छा संस्कार दे। बाकी तो सब कुछ अपनी योग्यता के बलबूते पर वह हासिल कर लेगा।"
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संत की वाणी से सेठ की आंखें खुल गईं और उसने धन को महत्व न देकर अपने बेटे को संस्कार देने का निर्णय किया। सही रास्ते पर लाने का निर्णय किया।

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