Edited By Jyoti,Updated: 15 Jan, 2022 12:14 PM
धर्म जगत में मुक्ति, मोक्ष, ईश्वर, समाधि आदि अनेक ऐसे जटिल शब्दों का प्रयोग होता है
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Motivational thought: धर्म जगत में मुक्ति, मोक्ष, ईश्वर, समाधि आदि अनेक ऐसे जटिल शब्दों का प्रयोग होता है जिनका ऐसा रहस्यमयी विवरण प्रस्तुत किया जाता है जो ज्ञान के क्षेत्र में अत्यंत उन्नत मनुष्यों के पल्ले भी नहीं पड़ता। ऐसे शब्दों के परम्परा प्राप्त अर्थ समझाए जाते हैं जिनका उपयोग आज के मनुष्य के लिए दुष्कर प्रतीत होता है।
धर्म और अध्यात्म की शब्दावली अनुभव पर आधारित होने से समझने-समझाने और जीवन में उपयोग की दृष्टि से सरल हो जाती है। जहां केवल अपने ज्ञान से लोगों को प्रभावित करने का उद्देश्य होता है, वहां श्रोता वाक कौशल से मुग्ध होकर चाहे कितनी प्रशंसा करें, किंतु उनका गूढ़ अर्थ उसे सही ढंग से समझ नहीं आता। यही कारण है कि मानव धर्म और अध्यात्म दोनों ही क्षेत्रों में अपनी वास्तविक उपयोगिता खोता चला जा रहा है।
साधना अथवा समाधि मानव जीवन की एक विशेष दशा है- मोक्ष और मुक्ति अथवा स्वर्ग-नरक की तरह यह शरीर की कोई भावदशा नहीं है। सामान्य रूप से यही समझ धर्म-साधना का व्यवाहारिक लक्ष्य है। समाधि ‘संसार’ का अर्थ ही है क्षण-क्षण परिवर्तित स्वरूप। मनुष्य में अन्य सभी प्राणियों से विशिष्ट प्रकाश उसी का तत्व है। जब एक सीमा से अधिक ‘भोग’ या ‘संग्रह’ मनुष्य करता है तो वह सामाजिक दुरुपयोग होता है। जहां शोषण है वहां धर्म कहां? भागवत धर्म तो प्रत्येक अणु-परमाणु के विस्तार और विकास की अभेद दृष्टि है।
सबके सुख में सबकी उन्नति में ही चेतना का आनंद है। यही चेतना का संतुलित रूप समाधि है जिसने सम्पूर्ण भाव जड़ताओं से अपने को मुक्त कर लिया है और कण-कण में व्याप्त भाव जड़ताओं और शोषणों का विरोध करते रहने का जो सतत् सफल प्रयास कर रहा है वही मुक्त है।
जब उसका संबंध चेतना के उस केंद्र से स्थापित हो जाता है जो ‘ईश्वर’ होता है तो मनुष्य शरीर में ही वह उच्च पद प्राप्त कर लेता है। भगवान का अर्थ होता है विशेष शक्ति प्राप्त व्यक्ति।