Edited By Niyati Bhandari,Updated: 29 Jun, 2020 11:43 AM
सुख साधना से
सुख का पैसे से कोई संबंध नहीं है। अगर होता तो जो जितना अधिक धनी होता वह उतना ही अधिक सुखी होता और दिगम्बर मुनि तो दुख की पराकाष्ठा होता। मगर सच्चाई इससे उल्टी है। धनी से
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Muni Shri Tarun Sagar: सुख साधना से
सुख का पैसे से कोई संबंध नहीं है। अगर होता तो जो जितना अधिक धनी होता वह उतना ही अधिक सुखी होता और दिगम्बर मुनि तो दुख की पराकाष्ठा होता। मगर सच्चाई इससे उल्टी है। धनी से धनी आदमी भी अपने दुख का रोना रो रहा है और मुनि चटाई पर भी चैन की नींद सो रहा है। धन से सुविधाएं मिल सकती हैं, सुख नहीं। सुविधाएं तन को सुख दे सकती हैं, मन को नहीं। सुख साधनों से नहीं, साधना से मिलता है।
घुंघरू और हीरे
मेरा मानना है कि बुजुर्ग लोग टोका-टाकी की आदत छोड़ दें तो उन्हें आखिरी वक्त तक सम्मान से दाल-रोटी मिलती रहेगी। क्या तुम्हें पता नहीं कि बहुत बोलने वाले घुंघरू पैरों में पहने जाते हैं और मौन धारने वाले हीरे मस्तक पर चढ़ जाते हैं। कुछ लोग इसलिए दुखी हैं कि वे ज्यादा बोलते हैं और कुछ लोग इसलिए दुखी हैं कि वे कुछ नहीं बोलते। कहां बोलना है और कहां नहीं? इतना विवेक तो होना ही चाहिए।
आप क्या हैं?
दुनिया में चार तरह के लोग हुआ करते हैं। भाग्यशाली, सौभाग्यशाली, महाभाग्यशाली और दुर्भाग्यशाली। जिसके पास धन है वह भाग्यशाली। जिसके पास धन भी है और स्वास्थ्य भी है, वह सौभाग्यशाली। जिसके पास धन भी है, स्वास्थ्य भी है और धर्म भी है, वह महाभाग्यशाली और जिसके पास न धन है, न स्वास्थ्य है और न ही धर्म है, वह दुर्भाग्यशाली। सोचिए : आप क्या हैं?
स्वभाव की मैचिंग
जमाना मैचिंग का है। महिलाओं का ज्यादातर समय मैचिंग में बर्बाद होता है। मैं मैचिंग के खिलाफ नहीं हूं। मेरा निवेदन सिर्फ इतना है कि वस्त्रों और आभूषणों के साथ अपना स्वभाव भी ऐसा बनाओ कि वह कहीं भी मैच कर जाए। परिस्थिति के अनुरूप आदमी अपनी मन:स्थिति बना ले तो उसका पचास प्रतिशत दुख आज और अभी खत्म हो जाएं। स्वभाव की मैचिंग करने वाला ही सुखी रह सकता है।