तरुण सागर जी: कड़वे प्रवचन ... लेकिन सच्चे बोल

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 11 Nov, 2020 08:18 AM

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सब रो रहे हैं लोग पूछते हैं- मुनि श्री, 13-14 साल की उम्र में आपको वैराग्य कैसे हो गया? न विवाह किया, न संसार देखा। आखिर क्या देख कर आपने संसार छोड़ दिया? मैं कहता हूं-

सब रो रहे हैं
लोग पूछते हैं- मुनि श्री, 13-14 साल की उम्र में आपको वैराग्य कैसे हो गया? न विवाह किया, न संसार देखा। आखिर क्या देख कर आपने संसार छोड़ दिया? मैं कहता हूं-तुम्हारे जैसे लोगों के रोते हुए चेहरों को देख कर ही मैंने संसार छोड़ दिया। संसार में कोई भी तो हंसता हुआ नहीं दिखता, सब रो रहे हैं। बाहर से जो भी सुखी है, वह भी भीतर से रो रहा है। तुम्हारे चेहरों को देख कर मैंने अनुमान लगा लिया कि संसार में सुख नहीं है और मैंने संसार छोड़ दिया।

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जीवन एक पड़ाव
मनुष्य जीवन एक पड़ाव है। अत: यहां से आगे की यात्रा पूरी सोच-समझ के साथ होनी चाहिए। अगर गलती से भी ‘कामना ट्रांसपोर्ट’ या फिर ‘वासना की बस’ का टिकट कटा लिया तो खेल खत्म हो जाएगा। रात में बस द्वारा लम्बा सफर कर रहा मनुष्य पड़ाव पर सावधानी से बस का चयन करता है, ठीक ऐसी ही सावधानी हमें इस पड़ाव पर बरतनी है। अगर ऐसा न हुआ तो फिर ‘बेक टू पैवेलियन’ यानी फिर नरक।

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दान सबसे बड़ा
लोग संत का प्रवचन सुन रहे थे। संत ने कहा-दान सबसे बड़ा धर्म है, सबसे बड़ी सेवा है। पास ही बैठा एक व्यक्ति उठा और बोला मैं 10 हजार रुपए दान में देता हूं। उसके यह कहते ही मुनि ने उसे मंच पर बुला लिया। यह है दान की महिमा। पैसा जब तक जेब में था, तब तक वह आपके जैसा ही था लेकिन दान देते ही वह इतना बड़ा हो गया कि मुनि के करीब जा बैठा।


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अपने आप कुछ नहीं मिलता
गाय दूध देती नहीं है, दूध निकालना पड़ता है। जीवन में महान कार्य स्वत: ही सम्पन्न नहीं होते, उनके लिए प्रयास करना पड़ता है। सम्मेद-शिखर या वैष्णव देवी की यात्रा के लिए जब सत्तर साल की कोई बूढ़ी मां या सात साल का कोई बच्चा ऊपर चढ़ता है तो उनकी नजरें केवल ऊपर रहती हैं। वे न तो नीचे देखते हैं न पीछे। संकल्प की शक्ति के दम पर ही वे बिना सांस खोए ऊपर चढ़ जाते हैं। जिंदगी की विकास यात्रा को ऊंचाइयां प्रदान करने के लिए ऐसे ही दृढ़ संकल्प की जरूरत होती है।

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प्रवचन सुनने के बाद रोना आना चाहिए
कुछ लोग कहते हैं कि तरुण सागर जी कथा में बहुत हंसाते हैं। मैं कहता हूं अरे बाबा। ये सत्संग क्या हंसने के लिए हैं? प्रवचन सुनने के बाद रोना आना चाहिए कि अब तक का मेरा जीवन यूं ही खाने-पीने और सोने में चला गया। कथा को सिर्फ सुनना नहीं है बल्कि गुनगुनाना भी है। और फिर मैं ‘कथा’ कहां, मैं तो जीवन की ‘व्यथा’ सुनाता हूं।

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