Edited By Jyoti,Updated: 23 May, 2021 02:20 PM
जेष्ठ मास में हिंदू धर्म के कई मुख्य त्योहार मनाए जाते हैं इन्हीं में से एक त्यौहार नारद जी को समर्पित है। धार्मिक किंवदंतियों के अनुसार ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को
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जेष्ठ मास में हिंदू धर्म के कई मुख्य त्योहार मनाए जाते हैं इन्हीं में से एक त्यौहार नारद जी को समर्पित है। धार्मिक किंवदंतियों के अनुसार ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को नारद जयंती का पर्व इनके जन्मदिन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। बता दें इस बार जेष्ठ मास 27 मई दिन गुरुवार को मनाई जाएगी। तो आइए किसी खास मौके को ध्यान में रखते हुए जानते हैं भगवान नारद जी का जन्म कैसे हुआ। शास्त्रों के अनुसार नारद मुनि का जन्म सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी की गोद से हुआ था। तो वही ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार नारद जी ब्रह्मा जी के कंठ से उत्पन्न हुए थे कहा जाता है।
इनसे जुड़ी एक कथा के अनुसार प्राचीन समय में दक्ष पुत्रों को योग का उपदेश उपदेश देकर उन्हें संसार से विमुख करने पर राजा दक्ष क्रोधित हो गए और उन्होंने नारद का विनाश कर दिया। तदुपरांत ब्रह्मा जी के आग्रह करने पर राजा दक्ष ने कहा कि मैं इन्हें अभी तो जीवित नहीं कर सकता परंतु मैं आपको एक कन्या दे रहा हूं उसका कश्यप से विवाह होने पर ही नारद पुनर्जन्म ले पाएंगे।
कहीं पुराणों में यह भी उल्लेख मिलता है कि राजा प्रजापति दक्ष ने नारद मुनि जी को साथ दिया था कि वह 2 मिनट से ज्यादा कहीं भी रुक नहीं पाएंगे। यही वजह है कि शास्त्रों में इनके बारे में जो वर्णन किया गया है उसके अनुसार नारद जी अक्सर यात्रा करते रहते हैं। बता दें अथर्ववेद में भी नारद जी का काफी उल्लेख पढ़ने को मिलता है।
इनके जन्म से जुड़ी एक अन्य कथा यह भी है कि दक्ष प्रजापति के 10,000 पुत्रों को नारद जी ने संसार से निवृत्ति की शिक्षा दी। जबकि ब्रह्मा जी देवता उन्हें सृष्टि मार्ग पर आरूढ़ करना चाहते थे।
इसी के चलते उन्होंने क्रोध में आकर नारद जी को श्राप दे दिया था। जिसके चलते नारद जी गंधमादन पर्वत पर गंधर्व योनि में उत्पन्न हुए थे। कथाओं के अनुसार इस में योनि में इनका नाम उपबर्हण था। इनकी 60 पत्नियां थी और यह अधिक रूप पर होने की वजह से हमेशा सुंदर स्त्रियों से गिरे रहते थे। इसे ब्रह्मा जी ने इन्हें शुद्र योनि में पैदा होने का साथ भी दिया था।
इस सबके चलते नाथ जी का जन्म शुद्र वर्ग की एक दासी कि यहां हुआ था, जहां इनका जन्म होते ही इनके पिता का मृत्यु हो गई। सांप के काटने से इनकी माता जी भी संसार मृत्यु लोक के प्राप्त हो हई। और नारद जी संसार में अकेले रह गए। कथाओं के अनुसार उस समय उनकी उम्र केवल 5 वर्ष की थी। 1 दिन चातुर्मास के समय संतजन उनके गांव में ठहरे। नारद जी ने संतों की खूब सेवा की जिन की कृपा से उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ। और समय आने पर नारद जी का पांच भौतिक शरीर छूट गया और कल्प के अंत में ब्रह्माजी के मानस पुत्र के रूप में अवतरित हुए।