Narasimha Jayanti 2019: इन मंत्रों के जाप से होगा दुखों का सफ़ाया

Edited By Jyoti,Updated: 16 May, 2019 12:43 PM

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सनातन धर्म के अनुसार जब-जब पृथ्वी पर दुष्टों क अत्याचार बढ़ा तब तब भगवान ने उने संहार के लिए किसी न किसी रूप में जन्म लिया। इन्ही में से एक था भगवान विष्णु का नरसिंह अवतार।

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सनातन धर्म के अनुसार जब-जब पृथ्वी पर दुष्टों क अत्याचार बढ़ा तब तब भगवान ने उने संहार के लिए किसी न किसी रूप में जन्म लिया। इन्ही में से एक था भगवान विष्णु का नरसिंह अवतार। नारायण ने अपने इस अवतार में आधा मनुष्य व आधा शेर का शरीर धारण किया था। श्री हरि का ये रूप हिरणयकशिपु नामक दैत्य के अत्याचारों से धरती के लोगों को मुक्त करवाने के लिए लिय था। इस माह की 17 मई, 2019 यानि शुक्रवार के दिन नरसिंह जयंती का पर्व मनाया जाएगा। तो चलिए इस खास अवसर पर हम आपको बताते हैं नरसिंह देवता से जुड़ी पौराणिक कथाएं व मानयताएं साथ ही जानेंगे कि इस दिन इनके कौन से मंत्रों का जाप करके इन्हें प्रसन्न किया जा सकता है।
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महर्षि कश्यप का पुत्र था हिरण्यकशिपु
प्राचीन काल में कश्यप नामक एक ऋषि थे, जिनकी पत्नी का नाम दिति था। इनके दिति के दो पुत्र थे। जिस में एक का नाम 'हरिण्याक्ष' व दूसरे का 'हिरण्यकशिपु' था। मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु ने अपने वराह रूप में हिरण्याक्ष का वध किया था। जिस कारण हिरण्यकशिपु भगवान विष्णु से नफ़रत करता था और इसी क्रोध अग्नि में उसने अपने भाई की मृत्यु का प्रतिशोध लेने का संकल्प किया। कहते हैं बरसों तक कठोर तप कर उसने ब्रह्माजी से अजेय होने का वरदान प्राप्त कर लिया कि देव, दानव. मानव, पशु, घर, बाहर, दिन रात कहीं भी किसी भीतर से उसकी मृत्यु न हो। वरदान प्राप्ति के बाद उसने स्वर्ग पर अधिकार कर लिया।

हिरण्यकशिपु के स्वर्गाधिपति बनते ही देवताओं में हाहाकार मच गया। इस दौरान हिरण्यकशिपु कि पत्नी कयाधु ने एक बच्चे को जन्म दिया। बच्चे का नाम प्रहलाद रखा गया। पौराणिक कथाओं के अनुसार राक्षस कुल में जन्म होने के बावजूद प्रहलाद का मन भक्तिभाव में रमा हुआ था। वह श्रीहरी का अनन्य भक्त था और अपने पिता के अत्याचारों का विरोध भी करता था।

अपने पुत्र प्रहलाद को मारने के किए कई प्रयास
हिरण्यकशिपु ने प्रहलाद को प्रभु भक्ति से हटाने के लिए कई यतन किए। उसकी एक बहन थी जिसका नाम था होलिका। इसको यह वरदान प्राप्त था कि अग्नि उसे नहीं जला सकती है, परंतु जब वह श्रीहरि के परम भक्त प्रह्लाद को होलिका की गोद में बिठाकर अग्नि प्रज्वलित की गई तो आग में होलिका तो जलकर राख हो गई, किंतु प्रह्लाद दहकती आग में भी सुरक्षित बच निकला।
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जब खंभे से प्रकट हुए नरसिंह देव-
इस घटना के बाद हिरण्यकशिपु बहुत क्रोधित हुआ। एक दिन उसने अपने पुत्र से जब प्रहलाद भगवान विष्णु की पूजा कर रहा था तो हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद से पूछा कि बता तेरा भगवान है कहां? प्रहलाद ने जवाब में कहा कि भगवान तो सर्वत्र है और वह हर कहीं विद्यमान है। हिरण्यकशिपु ने क्रोधित होकर कहा कि क्या तेरा भगवान इस खंभे में भी है? तो प्रहलाद ने कहा हां। इतना सुनते ही हिरण्यकशिपु ने खंभे पर जोरदार प्रहार किया। तभी खंभे को चीरकर भगवान श्री नृसिंह प्रकट हुए और उन्होंने हिरण्यकशिपु को पकड़कर अपनी जांघों पर रखकर उसकी छाती को नखों से फाड़ डाला और उसका वध कर दिया। साथ ही भक्त प्रहलाद की भक्ति से प्रसन्न होकर उसको वर दिया। यही कारण है कि भगवान नृसिंह के प्रकटोत्सव को नृसिंह जयंती के रूप में मनाया जाता है।

इस दिन निम्न मंत्रों का जाप करने से समस्त दुखों का निवारण होता है-

ॐ उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम्।

नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्यु मृत्युं नमाम्यहम।।

ॐ नृम नृम नृम नर सिंहाय नमः ।।
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