नर्मदा जयंती 2020: क्या है नर्मदा के कंकर में शंकर के वास का रहस्य

Edited By Jyoti,Updated: 01 Feb, 2020 11:08 AM

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कहा जाता है कि एकमात्र हिंदू धर्म ऐसा धर्म है जिसमें 33 कोटि देवी-देवताओं के साथ-साथ पेड़- पौधे, जीव-जंतुओं आदि की भी पूजा-अर्चना की जाती है। इतना ही नहीं इसमें नदियों के साथ घाटों आदि को भी धार्मिक महत्व प्रदान है

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
कहा जाता है कि एकमात्र हिंदू धर्म ऐसा धर्म है जिसमें 33 कोटि देवी-देवताओं के साथ-साथ पेड़- पौधे, जीव-जंतुओं आदि की भी पूजा-अर्चना की जाती है। इतना ही नहीं इसमें नदियों के साथ घाटों आदि को भी धार्मिक महत्व प्रदान है। यही कारण है कि हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक माह में कोई न कोई त्यौहार आता ही रहता है जिनमें से कई पर्वों का संबंध उपरोक्त बताए जीव-जंतु या नदियों आदि से होता है। आज यानि 01 फरवरी, 2020 को नर्मदा नदी जंयती का पर्व मनाया जाएगा। बताया जाता है प्रत्येक साल माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को नर्मदा जयंती का पर्व मनाया जाता है। बता दें इस ही दिन रथ सप्तमी का पर्व भी मनाया जाता है। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार नर्मदा नदी संपूर्ण विश्व में दिव्य व रहस्यमयी नदी मानी जाती है। चारों वेदों की व्याख्या में श्री विष्णु के अवतार वेदव्यास जी ने स्कन्द पुराण के रेवाखंड़ में इसकी महिमा का वर्णन किया है। महाभारत, रामायण सहित अनेक हिंदू धर्म शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि मां नर्मदा की उत्पत्ति भगवान शिव जी से हुई थी। 
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मान्यता है नर्मदा जयंती पर मां नर्मदा नदी की पूजा-अर्चना, दीपदान, स्नान एवं दर्शन मात्र करने से मनुष्य के पापों का नाश हो जाता है। यही कारण है कि नर्मदा नदी के तटों पर अनेक ऋषिमुनियों, साधु संत तप आदि करते हैं। तो आइए जानते हैं इनकी पूजना विधि तथा साथ ही जानेंगे कि इनसे जुड़ी पौराणिक कथा- 

ऐसे करें नर्मदा जंयती पर पूजन
सप्तमी तिथि को मेकल सुता मां नर्मदा जी की जयंती के दिन सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त से पहले, प्रणाम करके नर्मदा स्नान करें। धुले हुए वस्त्र पहनकर विधिवत अक्षत, पुष्प, कुमकुम, हल्दी, धुप-दीप से पूजन करें। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार नर्मदा जयंती के दिन नर्मदा में 11 आटे के दीपक जलाकर दान करने से हर मनोकामना पूरी हो जाती है।
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पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार भगवान शंकर ने मैकल पर्वत पर कठोर तप साधना की। जिस दौरान उनको शरीर से पसीने की बूंदों निकली जिससे मैकल पर्वत पर एक जल कुंड का निर्माण  हो गया। कुछ समय बाद इसी जल कुंड में एक सुंदर कन्या ने जन्म लिया जो शांकरी नर्मदा नदी कही जाने लगी। भगवान शिव के कहने पर शांकरी नर्मदा एक नदी के रूप में कल-कल आवाज़ (रव) करती हुई बहने लगी। कल-कल आवाज़ करने के कारण एवं मेकल पर्वत पर जन्म लेने के कारण इनकी नाम मेकल सुता भी पड़ गया। 

स्कंद पुराण में नर्मदा नदी के बारे में उल्लेख के अनुसार भयंकर प्रलयकाल में भी नर्मदा नदी स्थिर और स्थाई रहती है। तो वहीं मत्स्य पुराण में लिखा है कि इसके दर्शन मात्र से पापियों के पाप नष्ट हो जाते हैं। गंगा, सरस्वती व नर्मदा नदी को ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद एवं अथर्वेद के समान पवित्र माना जाता है। बताया जाता है नर्मदा नदी के तट पर उद्गम से लेकर विलय तक कुल 60 लाख, 60 हज़ार तीर्थ स्थल बने हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार नर्मदा नदी का हर पत्थर शंकर रूप माना जाता है। नर्मदा के तट पर 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थापित है। कहा जाता है कि नर्मदा नदी विश्व की एक मात्र ऐसी नदी है जिसकी परिक्रमा की जाती है। 
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