क्या आप जानते हैं भगवान कृष्ण के इस भक्त के बारे में ?

Edited By Lata,Updated: 03 Dec, 2019 11:12 AM

narsi mehta jivan katha

जब-जब भगवान कृष्ण के भक्तों की बात की जाए तो नरसी मेहता जी का नाम लेना कोई नहीं भूलता है।

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जब-जब भगवान कृष्ण के भक्तों की बात की जाए तो नरसी मेहता जी का नाम लेना कोई नहीं भूलता है। वे अपनी कृष्ण भक्ति के साथ-साथ दानी स्वभाव के कारण भी बहुत प्रसिद्ध हैं। नरसीजी ने भगवान कृष्ण की भक्ति में अपना सबकुछ दान कर दिया था। आज उनके जन्म दिवस पर उनको याद करते हुए, बात करते हैं उनसे जुड़ी एक कथा।
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महान कृष्ण भक्त नरसी मेहता का जन्म गुजरात प्रांत के जूनागढ़ शहर में ब्राह्मण कुल में हुआ था। उनके पिता का नाम कृष्णदास और माता का नाम दयाकुंवर था। बचपन में ही इन्हें साधुओं की संगती मिली, जिसके प्रभाव से इनमें भगवान श्री कृष्ण की भक्ति का उदय हुआ। धीरे-धीरे भगवान श्री कृष्ण की भक्ति और भजन-कीर्तन में ही इनका सारा समय व्यतीत होने लगा। परिवार के लोग इनके रोज-रोज के साधु संग और भगवान के भजन को पसंद नहीं करते थे। उन लोगों ने इनसे घर-गृहस्थी के कार्यों में समय देने के लिए कहा, किन्तु नरसी जी पर उसका कोई प्रभाव न पड़ा। 

एक दिन इनकी भौजाई ने इन्हें ताना मारते हुए कहा कि ऐसी भक्ति उमड़ी है तो भगवान से मिल कर क्यों नहीं आते? इस ताने ने नरसी पर जादू का कार्य किया। वह उसी क्षण घर छोड़ कर निकल पड़े और जूनागढ़ से कुछ दूर एक पुराने शिव मंदिर में बैठकर भगवान शंकर की उपासना करने लगे। इनकी उपासना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर प्रकट हुए और इन्हें गोलोक ले जाकर भगवान श्रीकृष्ण की रास लीला का दर्शन कराया। दिन-रात भजन कीर्तन में लगे रहने और भरण-पोषण के लिए कोई कार्य न करने के कारण नरसी जी के परिवार में उपवास की स्थिति आ जाती थी। इनकी पत्नी ने इनसे बहुत बार कुछ कार्य करने के लिए कहा, किन्तु इनका विश्वास था कि इनके भरण-पोषण की सारी व्यवस्था भगवान स्वयं करेंगे। कहते हैं इनकी पुत्री के विवाह की सम्पूर्ण व्यवस्था भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं की थी। इसी प्रकार इनके पुत्र का विवाह भी भगवान कृपा से ही सम्पन्न हुआ।
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एक बार नरसी मेहता की जाति के लोगों ने उनसे कहा कि तुम अपने पिता का श्राद्ध करके सबको भोजन कराओ। नरसी जी ने भगवान श्री कृष्ण का स्मरण किया और देखते ही देखते सारी व्यवस्था हो गई। श्राद्ध के दिन कुछ घी कम पड़ गया और नरसी जी बर्तन लेकर बाजार से घी लाने के लिए गए। रास्ते में एक संत मंडली को इन्होंने भगवान नाम का संकीर्तन करते हुए देखा। नरसी जी भी उसमें शामिल हो गए। कीर्तन में यह इतना तल्लीन हो गए कि इन्हें घी ले जाने की सुध ही न रही। घर पर इनकी पत्नी बड़ी व्यग्रता से इनकी प्रतीक्षा कर रही थी।

भक्त वत्सल भगवान श्री कृष्ण ने नरसी का वेश बनाया और घी लेकर उनके घर पहुंचे। ब्राह्मण भोज का कार्य सुचारू रूप से सम्पन्न हो गया। कीर्तन समाप्त होने पर काफी रात्रि बीत चुकी थी। नरसी जी सकुचाते हुए घी लेकर घर पहुंचे और पत्नी से विलम्ब के लिए क्षमा मांगने लगे। इनकी पत्नी ने कहा, ‘‘स्वामी! इसमें क्षमा मांगने की कौन-सी बात है? आप ही ने तो इसके पूर्व घी लाकर ब्राह्मणों को भोजन कराया है।’’
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नरसी जी ने कहा, ‘‘भाग्यवान! तुम धन्य हो। वह मैं नहीं था, भगवान श्री कृष्ण थे। तुमने प्रभु का साक्षात दर्शन किया है। मैं तो साधु-मंडली में कीर्तन कर रहा था। कीर्तन बंद हो जाने पर घी लाने की याद आई और इसे लेकर आया हूं।’’

यह सुन कर नरसी जी की पत्नी आश्चर्य सागर में डूब गईं। कुछ वर्ष बाद इनकी पत्नी और पुत्र का देहांत हो गया और ये अपना सम्पूर्ण समय भगवान के भजन में बिताने लगे। 

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