Edited By Niyati Bhandari,Updated: 01 Jun, 2020 09:21 AM
ज्येष्ठ महीने में जब धरती तप रही होती है और गर्मी अपने प्रचंड रूप में होती है, तब भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए निर्जला एकादशी का सबसे कठिन व्रत रखा जाता है। इस व्रत में अन्न तो दूर रहा, जल भी ग्रहण नहीं किया जाता।
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Nirjala Ekadashi: ज्येष्ठ महीने में जब धरती तप रही होती है और गर्मी अपने प्रचंड रूप में होती है, तब भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए निर्जला एकादशी का सबसे कठिन व्रत रखा जाता है। इस व्रत में अन्न तो दूर रहा, जल भी ग्रहण नहीं किया जाता। निर्जला का मतलब है- बिना जल का व्रत। इस व्रत के नियम इतने कठोर हैं कि इसे हिंदू धर्म के सभी व्रतों में सबसे कठिन माना जाता है।
इस बार निर्जला एकादशी 2 जून को पड़ रही है। ऐसा भी माना जाता है कि निर्जला एकादशी को किए गए व्रत का महात्म्य सभी 24 एकादशियों में किए गए व्रत के बराबर है । साल में 24 एकादशियां होती हैं। अगर कोई 24 एकादशी के व्रत नहीं रख पाए तो अकेला निर्जला एकादशी का व्रत ही 24 एकादशियों के व्रत के बराबर शुभ फल प्रदान करता है। ऐसी मान्यता भी है कि निर्जला एकादशी का व्रत पूरे विधि-विधान के साथ करने से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष यानी चारों पुरुषार्थ की प्राप्ति होती है। इस व्रत को भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है और ऐसा माना जाता है कि भीम ने अपने जीवन में मात्र यही एक व्रत रखा था व वैकुंठ को गए थे । ऐसी मान्यता भी है कि निर्जला एकादशी का विधिपूर्वक व्रत रखने से जीवन में चल रही सभी मुसीबतों और बाधाओं से न केवल मुक्ति मिलती है बल्कि घर में लक्ष्मी का भी वास होता है और सुख समृद्धि बनी रहती है।
इस व्रत की शुरुआत प्रातः स्नान करने के बाद सूर्य देवता को जल अर्पित करके करनी चाहिए और इसके बाद पीले वस्त्र धारण करके भगवान विष्णु जी की पूजा करते हुए उन्हें पीले फूल, पंचामृत और तुलसी दल अर्पित करनी चाहिए। श्री हरि और महालक्ष्मी के मंत्रों का विधिपूर्वक जाप करना चाहिए। व्रत अवधि में ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
ऐसी मान्यता भी है कि निर्जला एकादशी पर व्रत रखने से चंद्रमा द्वारा उत्पन्न हुआ नकारात्मक प्रभाव समाप्त होता है और ध्यान लगाने की हमारी क्षमता बढ़ती है। इसके अलावा भगवान विष्णु की पूजा करने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार भी होता है। चावल खाना इस दिन सख्त मना है। व्रत करने वाले साधक के लिए जल का सेवन निषेध माना गया है लेकिन मीठे जल का वितरण करके पुण्य अर्जित किया जा सकता है।
शास्त्रों में इस बात का उल्लेख किया गया है कि निर्जला एकादशी के व्रत का समापन अगले दिन प्रात: स्नान करके सूर्य को जल अर्पित करके, गरीबों को अन्न-वस्त्र और जल का दान करने के बाद नींबू पानी पीकर, हल्का सात्विक भोजन करके समाप्त किया जा सकता है।
गुरमीत बेदी
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