Kundli Tv- निर्जला महाद्वादशी: 100 पीढ़ियों को मिलेगा बैकुण्ड का सुख

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 23 Jun, 2018 11:24 AM

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ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी सबसे अधिक पुण्यफल देने वाली है क्योंकि इस व्रत के करने से साल भर की सभी एकादशियों के व्रत के समान पुण्य फल की प्राप्ति होती है । इस बार यह एकादशी 23 जून को है और महाद्वादशी 24 जून को। इस व्रत में जल का सेवन न करने...

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ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी सबसे अधिक पुण्यफल देने वाली है क्योंकि इस व्रत के करने से साल भर की सभी एकादशियों के व्रत के समान पुण्य फल की प्राप्ति होती है । इस बार यह एकादशी 23 जून को है और महाद्वादशी 24 जून को। इस व्रत में जल का सेवन न करने के कारण यह निर्जला एकादशी कहलाती है। पाण्डवों के भाई भीमसैन ने इस एकादशी का व्रत किया था इसलिए यह भीमसैनी एवं पाण्डवा एकादशी के नाम से भी प्रसिद्घ है। अन्य एकादशियों में अन्न का सेवन नहीं किया जाता परंतु इस एकादशी में जल का सेवन करना भी निषेध है। ज्येष्ठ मास के लम्बे दिनों में जब सबसे अधिक गर्मी पड़ती है और प्यास भी अधिक लगती है, ऐसे में जल के बिना रहना वास्तव में ही बहुत कठिन तपस्या एवं साधना का प्रतीक है यह व्रत।

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कैसे करें व्रत- अन्य एकादशियों की भांति इस एकादशी के व्रत का संकल्प करके प्रात: स्नानादि क्रियाओं से निपटकर पूजन किया जाता है। इस व्रत में एकादशी के सूर्योदय से द्वादशी के सूर्योदय तक जल भी ग्रहण न करने का विधान है। इस व्रत में जल में शयन करने वाले भगवान विष्णु जी का पूजन धूप, दीप, नेवैद्य आदि वस्तुओं से विधिवत किया जाता है। 

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क्या और कैसे करें दान- इस व्रत में अपनी सामर्थ्यानुसार अन्न, जल, वस्त्र, छतरी, जल से भरा मिट्टी का कलश, सुराही तथा किसी भी धातु से बना जल का पात्र, हाथ का पंखा, बिजली का पंखा, शर्बत की बोतलें, आम, खरबूजा, तरबूज तथा अन्य मौसम के फल आदि का दान दक्षिणा सहित देने का शास्त्रानुसार विधान है । इसके अतिरिक्त राहगीरों के लिए किसी भी सार्वजनिक स्थान पर ठंडे एवं मीठे जल की छबील, प्याऊ लगाना तथा लंगर आदि लगाना अति पुण्यफलदायक है। व्रत का पारण ब्राह्मणों को यथाशक्ति मिठाई, अन्न, वस्त्र, स्वर्ण, चप्पल व गाय आदि वस्तुएं दक्षिणा सहित दान देने के पश्चात ही किया जाना चाहिए।

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व्रत से मिलने वाला पुण्यफल- पद्मपुराण के अनुसार निर्जला एकादशी व्रत के प्रभाव से जहां मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, वहीं अनेक रोगों की निवृत्ति एवं सुख सौभागय में वृद्घि होती है। इस व्रत के प्रभाव से चतुर्दशीयुक्त अमावस्या को सूर्यग्रहण के समय श्राद्घ करके मनुष्य जिस फल को प्राप्त करता है, वही फल इस व्रत की महिमा सुनकर मनुष्य पा लेता है। करोड़ों गोदान करने तथा सैंकड़ों अश्वमेध यज्ञ करने के समान इस व्रत का पुण्यफल है। विभिन्न प्रकार के अन्न एवं वस्त्रों से ब्राह्मणों को प्रसन्न एवं संतुष्ट करने वाले प्राणियों के लिए यह व्रत किसी रामबाण से कम नहीं है क्योंकि व्रत के प्रभाव से मनुष्य की बीती हुई तथा आने वाली 100 पीढिय़ों को भगवान वासुदेव के परमधाम की प्राप्ति होती है। 

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इस व्रत में होती है संयम की परीक्षा- हालांकि व्रत करने वाले साधक के लिए जल का सेवन करना निषेध है परंतु इस दिन मीठे जल का वितरण करना उतना ही अधिक पुण्यकारी है। भीष्ण गर्मी में प्यासे लोगों को जल पिलाकर व्रती अपने संयम की परीक्षा देता है अर्थात व्रती अभाव में नहीं बल्कि दूसरों को देकर स्वयं प्रसन्नता की अनुभूति करता है तथा उसमें परोपकार की भावना पैदा होती है। इस प्रकार भारी मात्रा में जल का वितरण करने पर भी वह अपनी भावनाओं पर पूरा संयम रखता है । वास्तव में साधना तो यही है कि वस्तु की बहुतायत होने पर भी साधक उस वस्तु का त्याग ही करता है। 


जल संरक्षण की भावना होती है जागृत- यह व्रत सभी पापों का नाश करने वाला तथा मन में जल संरक्षण की भावना को उजागर करता है। व्रत से जल की वास्तविक अहमियत का भी पता चलता है। मनुष्य अपने अनुभवों से ही बहुत कुछ सीखता है, यही कारण है कि व्रत का विधान जल का महत्व बताने के लिए ही धर्म के माध्यम से जुड़ा हुआ है। वैसे भी हमारे धर्म एवं समाज के सभी त्योहार किसी न किसी विशेष लक्ष्य की पूर्ति के लिए ही परम्पराओं के साथ जुड़े हुए हैं। इस व्रत की मूल भावना को अपनाकर जल का अपव्यय न करने का संकल्प करना ही वास्तव में निर्जला एकादशी व्रत है। 


क्या कहते हैं विद्वान - अमित चड्डा के अनुसार भगवान को एकादशी तिथि अति प्रिय है। चाहे वह कृष्ण पक्ष की हो अथवा शुक्ल पक्ष की।  इसी कारण इस दिन व्रत करने वाले भक्तों पर प्रभु की अपार कृपा सदा बनी रहती है। इस दिन रात्रि को दीपदान करने तथा रात्रि जागरण करने से सर्वश्रेष्ठ फल प्राप्त होता है। उन्होंने कहा कि दशमी को एकाहार, एकादशी में निर्जल एवं निराहार तथा द्वादशी में एकाहार करने का विधान है तथा कोई भी व्रत तब तक पूर्ण नहीं होता, जब तक उसका विधिवत पारण न किया जाए। उन्होंने कहा कि गौड़ीय वैष्णव व्रतोत्सव निर्णय पत्रम के अनुसार इस बार यह व्रत 24 जून महाद्वादशी को किया जाएगा तथा व्रत का पारण 25 जून को प्रात: 6:01 से पहले किया जाना चहिए। 

वीना जोशी
veenajoshi23@gmail.com

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