Edited By Jyoti,Updated: 06 Apr, 2021 02:12 PM
मां ने जब बेटे के सामने पानी जैसी खिचड़ी से भरी थाली खाने के लिए रखी तो बेटे ने कहा, ‘‘मैं आज अचानक खिचड़ी...तुम तो रोज दाल-भात बनाती थी।’’
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मां ने जब बेटे के सामने पानी जैसी खिचड़ी से भरी थाली खाने के लिए रखी तो बेटे ने कहा, ‘‘मैं आज अचानक खिचड़ी...तुम तो रोज दाल-भात बनाती थी।’’
‘‘हां बेटा...आज नगर में राम-अल्लाह के नाम पर धार्मिक तनाव बढ़ गया...जाने कब दंगा भड़क जाए...इसलिए तेरे पिता काम पर नहीं गए। अब कनस्तर में जितना चावल है उसे माहौल शांत होने तक चलाना है।’’
बेटा बोला, ‘‘मां एक बात मेरी समझ में नहीं आती की हमारे मास्टर साहब कहते हैं ‘मतो फिर लोग क्यों राम-अल्लाह के नाम पर लड़ते हैं...?’’
मां, ‘‘बेटा यही तो अनसुलझा सवाल है, जिसका उत्तर कोई नहीं दे सका। अगर लोग कर्म को ही धर्म या भगवान मान लेते तो इस धरती पर दंगे फसाद अलगाव क्यों होते और तुझे आज खिचड़ी क्यों खानी पड़ती।’’ बेटा अगला कोई प्रश्र किए बगैर थाली उठाकर खिचड़ी पीने की मुद्रा में मुंह से टिका चुका था। —सुनील ‘सजल’
व्यथा-कथा
नगर निगम का स्कूल रोज की तरह चल रहा था। एक दिन एक इंस्पैक्टर ने आकर कक्षाओं का मुआयना किया। चौथी कक्षा में आकर उसने पूछा, ‘‘सॢदयों में हमें कौन से कपड़े पहनने चाहिएं?’’
इस पर कुछ हाथ खड़े हुए, कुछ बुझ रही आंखें चमकीं। इंस्पैक्टर ने एक खड़े हुए हाथ को इशारा किया।
‘‘गर्म कपड़े जी।’’
जवाब सुनकर बाकी के हाथ नीचे हो गए।
‘‘मैं बताऊं जी?’’ एक हाथ अभी भी उठा हुआ था।
‘‘हां बताओ।’’
‘‘जी सर्दियों में फटे हुए कपड़े पहते हैं।’’
‘‘ऐसा तुम्हें किसने बताया?’’
‘‘बताया नहीं जी मेरी मां ऐसा ही करती हैं। यह देखिए।’’
और यह कहते हुए उसने गिनाना शुरू किया, ‘‘ये एक, ये दो, ये तीन फटी कमीजें और इन सबके ऊपर ये स्वैटर! मां कहती हैं कि सर्दियों में फटे हुए कपड़े स्वैटर के नीचे छिप जाते हैं।’’
—अशोक भाटिया