Edited By Jyoti,Updated: 07 Jul, 2022 11:07 AM

संत सुकरात के घर सवेरे से शाम तक सत्संग के लिए आने वालों का तांता लगने लगा। सुकरात की पत्नी कर्कश स्वभाव की थी। वह सोचती थी कि निठल्ले लोग बेकार ही उनके घर अड्डा जमाए रहते हैं। वह समय-समय पर उनके साथ रूखा व्यवहार करती। इस बात से सुकरात को बहुत दुख...
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संत सुकरात के घर सवेरे से शाम तक सत्संग के लिए आने वालों का तांता लगने लगा। सुकरात की पत्नी कर्कश स्वभाव की थी। वह सोचती थी कि निठल्ले लोग बेकार ही उनके घर अड्डा जमाए रहते हैं। वह समय-समय पर उनके साथ रूखा व्यवहार करती। इस बात से सुकरात को बहुत दुख होता था।

एक दिन सुकरात लोगों के साथ बैठे बतिया रहे थे कि पत्नी ने उनके ऊपर छत पर से गंदा पानी फैंक दिया। इतना ही नहीं, वह उन्हें निठल्ला कहकर गालियां भी देने लगी। सत्संगियों को यह अपना बड़ा अपमान लगा।
सुकरात को भी यह व्यवहार बुरा लगा, परन्तु उन्होंने बहुत धैर्य के साथ उपस्थित लोगों से कहा, ‘‘आप सभी ने सुना होगा कि जो गरजता है, वह बरसता नहीं। आज तो मेरी पत्नी ने गरजना-बरसना साथ-साथ कर उपरोक्त कहवात को ही झुठला दिया।’’
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सुकरात के विनोद भरे ये शब्द सुनते ही तमाम लोगों का क्रोध शांत हो गया। वे पुन: सत्संग में लिप्त हो गए।
सुकरात का धैर्य देखकर उनकी पत्नी चकित रह गई। उसी दिन से उसने अपना स्वभाव बदल लिया और आने वाले लोगों का सत्कार करने लगी।
