Edited By Lata,Updated: 02 Dec, 2019 11:21 AM
एक घर के पास काफी दिन से एक बड़ी इमारत का निर्माण कार्य चल रहा था। प्रतिदिन वहां मजदूरों के छोटे-छोटे बच्चे एक-दूसरे की
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एक घर के पास काफी दिन से एक बड़ी इमारत का निर्माण कार्य चल रहा था। प्रतिदिन वहां मजदूरों के छोटे-छोटे बच्चे एक-दूसरे की शर्ट पकड़कर रेल-रेल का खेल खेलते थे। रोज कोई बच्चा इंजन बनता और बाकी बच्चे डिब्बे बनते। इंजन और डिब्बे वाले बच्चे रोज बदल जाते लेकिन सिर्फ चड्डी पहने एक छोटा बच्चा हाथ में कपड़ा घुमाते हुए रोज गार्ड ही बनता। ऐसा कई दिन चलता रहा। एक सज्जन रोज उन बच्चों को खेलते हुए देखते थे। एक दिन उन्होंने कौतुहल से गार्ड बनने वाले बच्चे को पास बुलाकर पूछा कि वह प्रतिदिन गार्ड ही क्यों बनता है? कभी इंजन, डिब्बा बनने की इच्छा नहीं होती?
इस पर वह बच्चा बोला कि बाबूजी, मेरे पास पहनने के लिए कोई शर्ट नहीं है, जिसके चलते उसके पीछे वाले उसको कैसे पकड़ेंगे और उसके पीछे कोई खड़ा कैसे होगा इसीलिए मैं रोज गार्ड बनकर ही खेल में हिस्सा लेता हूं।
यह बोलते समय हालांकि उस बच्चे की आंखों में पानी दिखाई देने लगा लेकिन वह छोटा-सा बच्चा उन सज्जन को एक बहुत बड़ा पाठ पढ़ा गया। यानी किसी का भी जीवन कभी भी परिपूर्ण नहीं होता, उसमें कोई न कोई कमी जरूर रहती है। वह बच्चा मां-बाप से गुस्सा होकर रोते हुए बैठ सकता था लेकिन उसने ऐसा नहीं किया और उसने विपरीत परिस्थितियों का समाधान ढूंढा।