Edited By Lata,Updated: 29 Jan, 2020 04:38 PM
दामोदर बचपन से ही मेधावी था। घटनाओं को तो वह क्षण मात्र में काव्य रूप दे देता था। उसकी प्रतिभा की
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दामोदर बचपन से ही मेधावी था। घटनाओं को तो वह क्षण मात्र में काव्य रूप दे देता था। उसकी प्रतिभा की सर्वत्र चर्चा होती लेकिन उसके पिता प्रसन्न ही न होते। दामोदर का बाल मन इसलिए दुखी भी रहता था। समय बीतता गया। दामोदर के कवि रूप में निखार आता गया। शिक्षा ने भाषा, सामथ्र्य व विचार को और परिपक्व किया। दामोदर की प्रशंसा चारों ओर होती लेकिन पिता के मुंह से प्रशंसा सुनने की दामोदर की लालसा अधूरी ही रही। दामोदर की ख्याति राजा ने भी सुनी। उसने दामोदर को राज सभा में आने का न्यौता दिया।
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दामोदर के काव्य पाठ से खुश होकर राजा ने उसे रथ भेंट किया। रथ लेकर दामोदर घर पहुंचा और माता-पिता को सारी बात बताई। मां ने उत्साहित होकर कहा, ''कुछ पंक्तियां हमें भी सुनाओ। उसने झट राज सभा में गाए गीतों को सुना दिया। गीत सुनकर पिता ने कहा, ''बस इसी से राजा इतना खुश हो गया? पिता की इस बात से दामोदर का हर्ष जाता रहा। बात इतनी चुभी कि वह घर से निकल गया। उसका जैसे जीवन ही सूना हो गया था।
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कई दिनों तक इधर-उधर भटकने के बाद एक दिन मां से मिलने घर लौटा तो बाहर से ही मां को पिता से कहते हुए सुना, ''जब से दामोदर गया है, आप ठीक से खाते नहीं हैं। रात में सो भी नहीं पाते। मौनी बाबा बनकर बैठे हैं। पुत्र से इतना ही प्यार था तो उस दिन उसकी बुराई क्यों की? फिर उसने पिता की आवाज सुनी, ''पुत्र का यश पिता का यश होता है। उस दिन उसे रथ पर देखकर मैं आनंदित था। प्रशंसा से विकास बाधित होता है, बस इसलिए मैंने अपनी खुशी रोकी। यह सुनकर दामोदर की आंखों से आंसू बहने लगे। वह पिता के चरणों में गिर गया। पिता ने भी पुत्र को गले लगाया। यही दामोदर आगे चलकर महान कवि भारवी के नाम से प्रसिद्ध हुए।