Edited By Lata,Updated: 13 Feb, 2020 09:52 AM
एक बार पैरिस के एक प्रसिद्ध होटल में एक व्यक्ति आया। उसे काफी भूख लगी थी और आते ही उसने तरह-तरह का
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एक बार पैरिस के एक प्रसिद्ध होटल में एक व्यक्ति आया। उसे काफी भूख लगी थी और आते ही उसने तरह-तरह का खाना ऑर्डर कर दिया। खाना आया और उसने छक कर भोजन किया। भोजन करने के बाद जब बिल आने का वक्त हुआ तो वह व्यक्ति दुविधा में पड़ गया और वहीं बैठकर सोचने लगा। थोड़ी देर विचार मंथन करने के बाद उस व्यक्ति ने होटल के बैरे को इशारे से अपनी ओर बुलाया और फिर उसे वहीं एक कोने में ले गया।
वहां उसने बैरे से विनम्रता पूर्वक कहा, ''भाई, एक समस्या है। मेरे पास तुम्हें देने के लिए फूटी कौड़ी भी नहीं है। मैं एक राजनीतिक कार्यकत्र्ता हूं और इन दिनों राजनीतिक निर्वासन भोग रहा हूं। न तो मेरे खाने का कोई ठिकाना है और न ही रहने का। मुझे बहुत ज्यादा भूख लग गई थी, इसलिए मैं अपने आपको रोक न सका। तुम मुझे बिल अदा करने के लिए कुछ पैसे उधार दे दो। मैं तुम्हें वापस कर दूंगा। मुझे तुम भले आदमी नजर आते हो। उम्मीद है, तुम इन्कार नहीं करोगे।
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बैरे को उस व्यक्ति की बातों में सच्चाई नजर आई। उसने उसे कुछ पैसे दिए और वह व्यक्ति बिल चुकाकर होटल से चला गया। दरअसल वह व्यक्ति और कोई नहीं बल्कि रूसी क्रांति के जनक व्लादिमीर लेनिन थे। रूसी क्रांति के बाद जब लेनिन अपने मुल्क के सर्वोच्च नेता बने, तब भी उन्हें पैरिस के उस बैरे से लिया कर्ज याद था। उन्होंने बैरे के पास न सिर्फ कर्ज की रकम भिजवाई बल्कि उसके साथ कई उपहार भी भिजवाए लेकिन उस बैरे ने रकम और उपहार लौटाते हुए कहा, ''यह कर्ज मैंने एक भूखे-प्यासे और बेहाल व्यक्ति को दिया था, न कि किसी शक्तिशाली राष्ट्र के महान शासक को। यह जानकर लेनिन उस बैरे के प्रति मन ही मन नतमस्तक हो गए।