Edited By Niyati Bhandari,Updated: 11 Sep, 2018 12:25 PM
एक सेठ के पास अपार धन-सम्पत्ति थी किंतु फिर भी उसके मन को शांति न थी। एक दिन किसी व्यक्ति ने बताया कि अमुक नगर में एक साधु रहता है। वह लोगों को ऐसी सिद्धि देता है जिससे मनचाही वस्तु प्राप्त हो जाती है।
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एक सेठ के पास अपार धन-सम्पत्ति थी किंतु फिर भी उसके मन को शांति न थी। एक दिन किसी व्यक्ति ने बताया कि अमुक नगर में एक साधु रहता है। वह लोगों को ऐसी सिद्धि देता है जिससे मनचाही वस्तु प्राप्त हो जाती है।
सेठ उस साधु के पास जाकर बोला, ‘‘महाराज मेरे पास बहुत पैसा है लेकिन मन की शांति नहीं है।’’
साधु ने कहा कि बेटा जैसा मैं करूं उसे चुपचाप देखते रहना। इससे तुम्हें मन में शांति करने की युक्ति मिल जाएगी। अगले दिन साधु ने सेठ को कड़ी धूप में बिठाए रखा और खुद कुटिया में चले गए। सेठ गर्मी से बेहाल हो गया मगर चुप रहा। दूसरे दिन साधु ने उसे कुछ भी खाने-पीने को नहीं दिया और स्वयं तरह-तरह के पकवान खाता रहा, सेठ इस दिन भी चुप रहा।
तीसरे दिन सेठ गुस्से में वहां से जाने लगा तो साधु बोला, ‘‘क्यों, क्या हुआ?’’
इस बात पर सेठ बोला, ‘‘महाराज मैं यहां बड़ी आशा लेकर आया था किंतु मुझे यहां निराशा ही मिली।’’
इस बात के उत्तर पर साधु ने कहा कि मैंने तो तुम्हें शांति की युक्ति बता दी। पहले दिन जब मैंने तुम्हें धूप में बैठने के लिए कहा और मैं स्वयं कुटिया में बैठा तो तुम्हें बताया कि मेरी छाया तुम्हारे काम नहीं आएगी। यह तुम्हें समझ नहीं आने पर मैंने तुम्हें भूखा रखा और खुद भरपेट खाया। उससे मैंने तुम्हें समझाया कि मेरी साधना से तुम्हें सिद्धि नहीं मिलेगी, उसी तरह शांति भी तुम्हें अपनी मेहनत और पुरुषार्थ से ही मिलेगी। मैं तुम्हारे मन को शांत नहीं कर सकता। उसके लिए तुम्हें खुद ही मन की शांति प्रदान करने वाले काम करने होंगे। यह सुनकर सेठ की आंखें खुल गईं और वह साधु से आशीर्वाद लेकर अपने घर चला गया।
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