बस, जरूरत है तो एक अदद घाघ बेवकूफ बनाने वाले की

Edited By Punjab Kesari,Updated: 10 Dec, 2017 01:46 PM

only need a person who make someone fool or idiot

बेवकूफ बनाने की कला ईश्वर की अनुपम देन है। यह सबके लिए सहज-सुलभ नहीं होती। ऊपर वाला अपने खासम-खास बंदों को ही इस कला का अमूल्य उपहार देता है।

बेवकूफ बनाने की कला ईश्वर की अनुपम देन है। यह सबके लिए सहज-सुलभ नहीं होती। ऊपर वाला अपने खासम-खास बंदों को ही इस कला का अमूल्य उपहार देता है। बात यह भी है कि यदि वे सबको इसका उपहार देने लगे, तो फिर बेवकूफ बनने के लिए दुनिया में बचेगा कौन ? बनाने वाला एक हो तो बनने वाले भी तो सौ-पचास चाहिएं। यह बेहद गरिमामय और सम्मानित कला है। किसी लल्लू-पंजू के वश की बात नहीं। बेवकूफ बनाने की कला के महत्व को देखते हुए ‘अप्रैल-फूल’ के नाम से एक अप्रैल को दुनिया भर में धूमधाम के साथ इसका महोत्सव मनाया जाता है। पूरी धरती के कलाकार बेवकूफ बनाने की अपनी अनोखी कला का उस दिन अपने-अपने देश में नायाब प्रदर्शन करते हैं। 


इस देश में अंग्रेजों के आने के साथ बेवकूफ बनाने की यह कला डेंगू की बीमारी की तरह बे-रोक-टोक फैलती हुई अपने उत्कर्ष की चरम ऊंचाइयों को छूने लगी। गोरे इस कला के छुपे रुस्तम थे। वे इस देश में व्यापारी बनकर घुसे और अपने बेवकूफ बनाने के हुनर का सहारा लेकर बड़े-बड़े नवाबों, राजा-महाराजाओं का बिस्तर गोल कर दिया। देखते-ही-देखते सीन बदल गया, पंचम जार्ज और विक्टोरिया यहां के किंग और क्वीन बन गए। वे लगातार हिंदुस्तान को बेवकूफ बनाते रहे। आजादी के बाद अंग्रेजों के बेवकूफ बनाने की कला को उनके नौ-दो ग्यारह होते ही इस देश के खद्दरधारियों, व्यापारियों, सरकारी अधिकारियों और बाबुओं ने लपक लिया।  ये खद्दरधारी जनसेवक दिल्ली की कुर्सी पर आराम से पसरे हुए कभी गरीबी हटाते हैं, कभी हिंदुस्तान की धरती पर अच्छे दिन उतारते हैं। मजा यह कि उधर ठीक उसी समय गांव में गरीब किसान गले-गले तक कर्जे में डूबे हुए आत्महत्या कर रहे होते हैं। 


टी.वी.के चैनलों में बैठे या फिर अपने सुख-सुविधाओं वाले आश्रमों की गद्दियों में आराम से लेटे बाबागण बेवकूफ बनाने की इस कला के उस्ताद होते हैं। वे जिंदगी से परेशान भक्तों को संकटों से निजात दिलवाने के नाम पर उनसे मोटी-मोटी दक्षिणा झपटने के बाद उन्हें पुराना टूथब्रश बदलने या फिर कोई कोल्ड ड्रिंक पीने की सलाह देते हैं। स्त्रियां हुईं तो उनकी समस्या समाधान के लिए उन्हें रात को अपने अंत:पुर की आध्यात्मिक सैर करवाते हैं। भक्तगण दक्षिणा दे-देकर जितने भिखारी होते जाते हैं। बाबाओं के आश्रम उतने ही भव्य बनते जाते हैं। व्यापारीगण दुकान पर शुद्धता की गारंटी का बड़ा-सा चमकीला बोर्ड लगाए  अपनी बेवकूफ बनाने की कला का नायाब नमूना दिखाते हुए,खाद्य पदार्थों में रेत, कंकड़, मिट्टी की मिलावट करके अपने हिंदुस्तानी भाइयों की पाचन शक्ति को मजबूत करने में अप्रतिम योगदान देते हैं।

 

वैसे ही अनेक स्वनाम धन्य उद्योगपतिगण, बड़े-बड़े उद्योग खोलने के नाम पर बेवकूफ बनाने की अपनी महान कला का प्रदर्शन करते हुए बैंकों से करोड़ों-अरबों का कर्ज लेते हैं और एक दिन पब्लिक की मेहनत की गाढ़ी कमाई हजम कर माल्या महान की तरह हंसते-मुंह चिढ़ाते हुए,लंदन-पैरिस भाग जाते हैं। सरकारी अफसर और बाबू तो इस बेवकूफ बनाने की कला के महान विशेषज्ञ ही होते हैं। बेवकूफ बनने वाली जनता की हिंदुस्तान में कमी नहीं है। रोज अलसुबह चौबीस घंटे बेवकूफ बनने को वे खुशी-खुशी तैयार मिलते हैं। वादों और आश्वासनों वाले मोतीचूर के लड्डूओं का टोकरा लेकर निकलिए। खाने के लिए लपकते, एक ढूंढो हजार मिलते हैं। बस,जरूरत है तो एक अदद घाघ बेवकूफ बनाने वाले की।

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