Edited By Punjab Kesari,Updated: 02 Sep, 2017 06:53 AM
भगवान को एकादशी अति प्रिय है, इसीलिए एकादशी तिथि को किए गए व्रत एवं हरिनाम संकीर्तन से प्रभु बहुत जल्दी और अधिक प्रसन्न होकर अपने भक्तों पर अपार कृपा करते हैं। इस मास में भगवान वामन जी का अवतार हुआ था
भगवान को एकादशी अति प्रिय है, इसीलिए एकादशी तिथि को किए गए व्रत एवं हरिनाम संकीर्तन से प्रभु बहुत जल्दी और अधिक प्रसन्न होकर अपने भक्तों पर अपार कृपा करते हैं। इस मास में भगवान वामन जी का अवतार हुआ था इसी कारण व्रत में भगवान विष्णु के वामन अर्थात बौने रूप की पूजा करने से भक्त को तीनों लोकों की पूजा करने के समान फल मिलता है। यह एकादशी वाजपेय यज्ञ के समान पुण्यफलदायिनी होती है। मनुष्य के सभी पापों का नाश करने वाली इस एकादशी व्रत के प्रभाव से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं तथा अंत में उसे प्रभु के परमपद की प्राप्ति होती है। विधिपूर्वक व्रत करने वालों का चन्द्रमा के समान यश संसार में फैलता है तथा व्रत की कथा पढ़ऩे वाले तथा श्रवण करने वालों को हजार अशवमेध यज्ञ के बराबर फल प्राप्त होता है।
व्रत की कथा
त्रेतायुग में बलि नाम का दैत्य भगवान का परमभक्त था, वह बड़ा दानी, सत्यवादी एवं धर्मपरायण था। यज्ञ के प्रभाव से उसने सभी देवताओं को अपने वश में कर लिया, यहां तक कि देवराज इन्द्र तक को जीत कर उसकी अमरापुरी पर कब्जा कर लिया। आकाश, पताल और पृथ्वी, तीनों लोक उसके आधीन थे। जिससे दुखी होकर सभी देवताओं ने भगवान के पास जाकर उनकी स्तुति की। भगवान ने सभी को राजा बलि से मुक्ति दिलाने के लिए वामन अवतार लिया तथा एक छोटे से ब्राह्मण का वेष बनाकर उन्होंने राजा बलि से तीन पग पृथ्वी मांगी, राजा बलि के संकल्प करने के पश्चात भगवान ने अपना विराट रूप धारण करके तीनों लोकों को नाप लिया तथा राजा बलि को सूतल क्षेत्र में भेज दिया। जिस प्रकार भगवान ने अपने भक्तों के हित्त में अवतार लेकर उन्हें राजा बलि से मुक्त करवाया वैसे ही निराकार परमात्मा साकार रूप में धरती पर अवतरित होकर लोगों की रक्षा करते हैं।
वीना जोशी
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