पद्मिनी एकादशी: केशव देंगे पुत्र प्राप्ति का वरदान

Edited By Jyoti,Updated: 25 May, 2018 09:10 AM

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धार्मिक शास्त्रों के अनुसार एक वर्ष में कुल 24 एकादशियां आती हैं जबकि अधिकमास या मलमास आने पर इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। अधिकमास में 2 एकादशियां आती हैं, जो पद्मिनी एकादशी यानि शुक्ल पक्ष और परमा एकादशी यानि कृष्ण पक्ष के नाम से जानी जाती हैं।

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धार्मिक शास्त्रों के अनुसार एक वर्ष में कुल 24 एकादशियां आती हैं जबकि अधिकमास या मलमास आने पर इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। अधिकमास में 2 एकादशियां आती हैं, जो पद्मिनी एकादशी यानि शुक्ल पक्ष और परमा एकादशी यानि कृष्ण पक्ष के नाम से जानी जाती हैं। अधिकमास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पद्मिनी एकादशी व कमला एकादशी भी कहते हैं। भगवान विष्णु को एकादशी अधिक प्रिय है, इसीलिए शास्त्रों में शुक्ल पक्ष व कृष्ण पक्ष दोनों एकादशियों का पालन करना अनिवार्य बताया गया है। मलमास में अनेक पुण्य प्रदान करने वाली पद्मिनी एकादशी को ही कहा गया है। इस व्रत का विधि-पूर्वक पालन करने वाले व्यक्ति को विष्णु लोक की प्राप्ति होती है।
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पौराणिक कथा के अनुसार त्रेतायुग में हैहय नामक राजा के वंश में कृतवीर्य नाम का राजा महिष्मती पुरी में राज्य करता था। उस राजा की बहुत सी परम प्रिय रानियां थीं, किन्तु राज्य को संभालने के लिए किसी के भी पुत्र नहीं था। संतानहीन होने के कारण राजा और उनकी रानियां तमाम सुख-सुविधा होने के बाद भी दु:खी रहते थे। 

एक दिन राजा ने वन में जाकर तपस्या करने का फैंसला किया, वे अपनी पत्नी के साथ वन के लिए निकल गए। हजारों वर्षो तक तप करने के बाद भी जब उनको मनोवांछित फल प्राप्त न हो सका तो वे बड़े निराश हुए।  

तब रानी ने देवी अनुसूया से इसका कारण पूछा और कहा, "मेरे स्वामी को तप करते हुए कई वर्ष बीत चुके हैं, किंतु अभी तक प्रभु प्रसन्न नहीं हुए हैं, जिससे हमें पुत्र की प्राप्ति हो सके। इसका क्या कारण है?"
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देवी अनुसूया ने कहा, "मलमास 32 मास पश्चात आता है। उसमें द्वादशी युक्त पद्मिनी शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत आता है। जिसका पालन करने व रात्रि जागरण करने से समस्त प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और अंत में बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है।"

माता अनुसूया से व्रत की महत्ता व विधि सुनने के बाद रानी ने पद्मिनी एकादशी का विधिपूर्वक पालन किया। जिससे नारायण रानी से अति प्रसन्न हुए और उसके समक्ष प्रकट होकर वरदान मांगने को कहा। रानी ने बड़ी श्रद्धा-भावना से भगवान की स्तुति की और अपने पति की इच्छा पूरी करने का निवेदन किया। 
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भगवान ने कहा- हे भद्रे! मैं तुम पर अति प्रसन्न हूं। अधिक मास को मेरे नाम पर ही पुरुषोत्त्म मास कहते हैं। इस पवित्र माह के समान अन्य कोई माह मेरा प्रिय नहीं है। इस मास की एकादशी भी मुझे अत्यन्त प्रिय है। आप लोगों ने इस व्रत का सही विधि-विधान से पालन किया है। अतः आपके पतिदेव को उनकी इच्छा अनुसार वरदान ज़रूर मिलेगा।
 
राजा को इच्छानुसार वरदान देकर भगवान अंर्तध्यान हो गए। कालान्तर में उसी रानी के गर्भ से महाराज कृतवीर्य का पुत्र कार्तवीर्यार्जुन का जन्म हुआ। तीनों लोकों में कार्तवीर्यार्जुन के समान कोई बलवान नहीं था। इसी कार्तवीर्यार्जुन ने रावण को युद्ध में पराजित कर बंदी बना लिया था।

जो व्यक्ति अधिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी का पालन करता है तथा संपूर्ण कथा को पढ़ता या सुनता हैं, वे भी यश का भागीदार कहलाता है और अंत में बैकुण्ठ लोक को प्राप्त होता हैं।
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