सात परिक्रमा करने से लकवा रोग हो जाता है छू मंतर

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 24 Jan, 2022 10:42 AM

paralysis disease goes away

राजस्थान की भूमि पर संत चतुरदास जी की एक ऐसी समाधि है, जहां लकवा अपने आप ठीक हो जाता है। यहां लोग स्ट्रैचर या व्हील चेयर पर आते हैं लेकिन जब अपने घर जाते हैं तो अपने पैरों पर चलकर।

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Sant Chaturdas ji: राजस्थान की भूमि पर संत चतुरदास जी की एक ऐसी समाधि है, जहां लकवा अपने आप ठीक हो जाता है। यहां लोग स्ट्रैचर या व्हील चेयर पर आते हैं लेकिन जब अपने घर जाते हैं तो अपने पैरों पर चलकर। नागौर जिले से 40 किलोमीटर दूर बोटाटी धाम है, जहां सात दिनों तक रहकर समाधि की सात परिक्रमा लगाने से लकवा अपने आप दूर हो जाता है। कहा जाता है कि 500 वर्ष पहले यहां चारण कुल में पैदा हुए चतुरदास नाम के एक सिद्ध योगी रहा करते थे। एक बार उनके आश्रम के पास घास चरते हुए एक गाय लडख़ड़ाकर गिर पड़ी और लकवा रोग की शिकार हो गई। स्थानीय लोगों ने इसकी सूचना संत तक पहुंचाई। योगी चतुरदास ने लोगों से उस गाय को आश्रम में लाने को कहा। गाय को किसी तरह लोग आश्रम में ले आए। योगीराज ने उस गाय को अपने योग बल से ठीक कर दिया।

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उसी दिन से लकवे के मरीज बाबा के आश्रम में जाते और भलेचंगे होकर अपने घर लौटते। आज वहां एक मंदिर है जो मंदिर के भीतर सिद्ध योगी चतुरदास जी महाराज की समाधि है। लकवाग्रस्त मरीज वहां आते हैं और सात दिनों तक वहीं रुक कर रोजाना सात परिक्रमा करते हैं और ठीक होकर अपने घर को प्रस्थान करते हैं।

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कुछ दिन पहले बोटाटी धाम से ठीक होकर लौटे जुहू (मुम्बई) के एक उद्योगपति नितिन मवानी बताते हैं कि सारा चमत्कार उस भूमि का है। मैं वहां पर व्हीलचेयर पर बैठकर गया था लेकिन आज मैं बिना किसी सहारे के चल-फिर रहा हूं। मवानी के अनुसार वहां आए मरीजों को पहले अपना रजिस्ट्रेशन करवाना पड़ता है, उसके बाद उनके रहने के लिए जगह उपलब्ध कराई जाती है। मरीज तथा उनके परिजनों की संख्या के हिसाब से आटा दिया जाता है, जिससे वे रोटी बना सकें। यह रोटी उन्हें चूल्हे पर ही बनानी होती है। लकड़ी की व्यवस्था मंदिर प्रबंधन द्वारा की जाती है। परहेज में बस इतना ही है कि प्रत्येक व्यक्ति को आरती के समय जमीन पर बैठना पड़ता है। 

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आरती के बाद मरीज मंदिर की परिक्रमा शुरू करता है। सात परिक्रमा सात दिनों तक वहीं पर रहकर की जाती है। यहां आने वाले मरीज संत की समाधि की धूनी की भस्म या तेल लगाते हैं। मंदिर प्रबंधन की ओर से मरीजों को यहां नि:शुल्क सेवा प्रदान की जाती है।   

 


 

 


 

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