देवरिया : जनकपुर से लौटते समय देवर्षि परशुराम ने यहां रूककर किया था तप

Edited By Jyoti,Updated: 03 May, 2022 06:29 PM

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देवरिया: उत्तर प्रदेश में देवरिया जिले के सलेमपुर क्षेत्र में स्थित सोहनाग धाम का विशेष महत्व है। कहा जाता है कि यहां भगवान परशुराम ने जनकपुर से लौटते समय रुक कर तप किया था। आज यह स्थान लोगों की आस्था का केन्द्र है।

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देवरिया: उत्तर प्रदेश में देवरिया जिले के सलेमपुर क्षेत्र में स्थित सोहनाग धाम का विशेष महत्व है। कहा जाता है कि यहां भगवान परशुराम ने जनकपुर से लौटते समय रुक कर तप किया था। आज यह स्थान लोगों की आस्था का केन्द्र है। परशुराम जयंती के अवसर पर इस स्थान पर हर साल भव्य मेले का आयोजन होता है। किंवदंती है कि भगवान परशुराम जनकपुर से धनुष यज्ञ संपन्न होने के बाद लौटते समय मार्ग में इस रमणीय स्थल को देख यहां विश्राम के लिये रुके थे। उन्हें यह स्थल इतना रास आया कि कुछ दिनों तक वह यहीं रुके और यहां तप भी किया। आज भी इस स्थल पर अक्षय तृतीया के दिन से पूजन के साथ ही भव्य मेला का आयोजन किया जाता है।
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कहा जाता है कि इस स्थल पर घना जंगल हुआ करता था। त्रेतायुग में भगवान श्रीराम ने जब जनकपुर में धनुष विखंडित किया तो भगवान परशुराम जनकपुर वायु मार्ग से पहुंच गए। इस दौरान लक्ष्मण व भगवान परशुराम के बीच संवाद हुआ। भगवान श्रीराम के बीच में आने के बाद ऋषि परशुराम जनकपुर से वापस चले आये तथा यहां रूककर तप किया। इसी वजह से इस स्थल का पौराणिक महत्व बढ़ गया और आज यह लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है। 

सोहनाग में भगवान परशुराम के मंदिर के ठीक पूरब की ओर करीब दस एकड़ की भूमि में एक पवित्र तालाब है। जिसका महत्व धार्मिकता के साथ ही वैज्ञानिक भी है। कहा जाता है कि कई सौ वर्ष पूर्व नेपाल के राजा सोहन तीर्थाटन को निकले थे। इसी स्थल पर तालाब को देख वह विश्राम करने के लिये रूक गये थे। कहा जाता है कि जब राजा ने इस तालाब के पानी का प्रयोग किया तो पानी के प्रयोग से उनका कुष्ठ रोग समाप्त हो गया। इससे प्रभावित होकर उन्होंने इस पोखर की खुदाई कराई तो उसमें से भगवान परशुराम, उनकी माता रेणुका, पिता जमदग्नि, भगवान विष्णु की बेशकीमती पत्थर की मूर्ति निकली। उसके बाद उन्होंने यहां मंदिर का निर्माण करवाया तथा बाद में इस स्थान का नाम राजा सोहन के चलते सोहनाग हो गया।     
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इस स्थान पर अक्षय तृतीया के दिन से सवा महीने तक चलने वाले भव्य मेले का आयोजन होता था। पूर्वांचल के इस महत्वपूर्ण मेले में दूर दूर से लोग शिरकत करने आते हैं। समय के साथ अब मेले की अवधि घटकर महज एक सप्तसह भर रह गयी है। मान्यता है कि भगवान परशुराम का जन्म 6 उच्च ग्रहों के योग में हुआ, इसलिए वह तेजस्वी, ओजस्वी और वर्चस्वी महापुरुष बने। उनक जन्म अक्षय तृतीया के दिन हुआ था। इसलिए अक्षय तृतीया के दिन परशुराम जयंती मनाई जाती है। वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र में रात्रि के प्रथम प्रहर में उच्च के ग्रहों से युक्त मिथुन राशि पर राहु के स्थित रहते माता रेणुका के गर्भ से भगवान परशुराम का प्रादुर्भाव हुआ था। अक्षय तृतीया को भगवान परशुराम का जन्म माना जाता है। विद्वानों के मतानुसार इस तिथि को प्रदोष व्यापिनी रूप में ग्रहण करना चाहिए क्योंकि भगवान परशुराम का प्राकट्य काल प्रदोष काल ही है। 

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