Edited By Lata,Updated: 31 Dec, 2019 12:38 PM
दुनिया में दो विचारधाराओं के लोग हैं। एक वे जो पूंजीवाद को मानते हैं, दूसरे जो समाजवाद की
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दुनिया में दो विचारधाराओं के लोग हैं। एक वे जो पूंजीवाद को मानते हैं, दूसरे जो समाजवाद की राह पर चलते हैं। पूंजीवादी धन संग्रह में विश्वास करते हैं और खुद को पूंजी का मालिक मानते हैं जबकि समाजवादी कहते हैं कि पूंजी पर सबका हक है। इन दोनों से अलग हमारी संस्कृति, शास्त्र और ऋषि कहते हैं कि यह सम्पत्ति मेरी नहीं है और न समाज की है। यह तो प्रसाद है और प्रसाद का हमेशा सम्मान होता है। प्रसाद हमेशा बांट कर खाया जाता है, अकेले नहीं। उसका दुरुपयोग मत करो। आपने देखा होगा कि प्रसाद का एक कण भी जमीन पर गिर जाता है तो उसे उठाकर लोग माथे से लगाते हैं।
पूंजीवाद और समाजवाद दोनों विचारधाराओं में कुछ न कुछ कमियां हैं। इनसे हटकर हमारे शास्त्रों और ऋषियों ने जो व्यवस्था दी है वह भी एक विचारधारा है। यह यज्ञ की विचारधारा है। भूखे को रोटी, वस्त्रहीन को वस्त्र, गरीब मरीजों का सही ढंग से इलाज, ये सब यज्ञ के ही अलग-अलग रूप हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि यह प्रसाद है। इसमें बांटने वाले को अहंकार नहीं होता क्योंकि वह खुशी-खुशी बांटता है, लेने वाला भी बेचारा बनकर नहीं लेता। वह प्रसाद पाकर खुश हो जाता है। घर में रसोई बना कर मन में ऐसी कामना करो कि कोई भूखा आ जाए तो पहले उसे खिलाऊं, फिर मैं खाऊं। यह यज्ञ की भावना है। जो सिर्फ अपने लिए ही रसोई बनाकर खाता है, उसे हमारे यहां उचित नहीं कहा गया। यज्ञ करो, मतलब भूखे को भोजन कराओ। सम्पत्ति का विकेन्द्रीकरण करके किसी रोते के आंसू पोंछो। किसी दुखी, दीनहीन की मदद करो।
इस प्रकार से यज्ञ कर सम्पत्ति का सदुपयोग करो और जो आपके पास है उसे प्रसाद रूप समझकर उसका उपयोग करो। यज्ञ की इस विचारधारा से बांटने वाले के मन में शांति, आनंद और संतोष के साथ-साथ इससे समाज और राष्ट्र में एक नई क्रांति और भाईचारे की भावना का उदय होगा।