Edited By Lata,Updated: 11 Feb, 2020 09:16 AM
संत नूरी चोटी के सूफी संत हुए। उनके गुरु थे संत जुनैद बगदादी। कहते हैं कि संत नूरी ने पूरा जीवन इतनी
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संत नूरी चोटी के सूफी संत हुए। उनके गुरु थे संत जुनैद बगदादी। कहते हैं कि संत नूरी ने पूरा जीवन इतनी तपस्या की कि उनके गुरु भी उनसे पीछे रह गए। फिर भी संत नूरी को लगता था कि उनकी तपस्या में कुछ अधूरापन है। जब उन्होंने खुद में बार-बार झांका तब उन्हें एहसास हुआ कि उनकी ज्ञानेंद्रियां उनके वश से बाहर हैं। किसी न किसी बात पर वे उनके आड़े आ जाती हैं। संत नूरी ने अपनी इस कमी को देख कर इसे बड़े परिश्रम और त्याग से दूर किया। ज्ञानेंद्रियों पर नियंत्रण पाने के बाद एक रोज वह नदी किनारे पहुंचे। उन्होंने मछली पकड़ने के लिए नदी में छड़ी डाली और तय किया, जब तक मछली न फंस जाए, वह वहीं खड़े प्रार्थना करते रहेंगे। जब मछली फंस गई तब वह खुशी से संत जुनैद के पास पहुंचे।
संत जुनैद को उन्होंने ज्ञानेंद्रियों पर नियंत्रण और प्रार्थना मात्र से मछली पकड़ने का किस्सा सुनाया। संत जुनैद मुस्कुराए और बोले, ''ए नूरी! जिसे तुम नियंत्रण कह रहे हो, वह भ्रम है। अगर तुमने मछली की जगह सांप के फंसने की प्रार्थना की होती, तब ज्ञानेंद्रियां काबू में होतीं। तुम्हारी प्रार्थना में तुम्हारी जुबान का जायका दाखिल हो गया। जैसे ही जायका आया, ज्ञानेंद्रियां खुद-ब-खुद उठ खड़ी हुईं। नूरी, यकीनन तुमने ज्ञानेंद्रियों को बहुद हद तक जीत लिया है, फिर भी तुम्हें खुद को भ्रम से निकालना होगा। साफ देखना सीखो। मछली तुम्हारी ख्वाहिश थी। अगर सांप तुम्हारी ख्वाहिश होता तब तुम्हारा यह चमत्कार कहलाता, अभी तो यह भ्रम है।
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संत जुनैद ने दुनिया को सिखाया कि हमेशा एक ऐसे गुरु की आवश्यकता होती है, जो भ्रम और वास्तविकता का अंतर दिखा सके, जो सही और बिल्कुल सही का अंतर बता सके, जो हमें सम्पूर्णता की तरफ ले जाए और बताए कि यह कमी भी दूर करो ताकि ईश्वर को पा सको।