पिपलेश्वर महादेव: जहां शिव जी की नहीं, बल्कि होती है इनकी पूजा

Edited By Jyoti,Updated: 22 Apr, 2019 04:02 PM

pipaleshwar mahadev

सोमवार का दिन भगवान शंकर की पूजा का सबसे अहम दिन माना जाता है। यही कारण है कि इस पावन दिन शिवालय आदि में अधिक भीड़ देखने को मिलती है। तो चलिए आज सोमवार के पावन दिन आपको एक ऐसे शिव मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं

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सोमवार का दिन भगवान शंकर की पूजा का सबसे अहम दिन माना जाता है। यही कारण है कि इस पावन दिन शिवालय आदि में अधिक भीड़ देखने को मिलती है। तो चलिए आज सोमवार के पावन दिन आपको एक ऐसे शिव मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां शिवलिंग की जगह 'जलधर' की पूजा होती है। तो आइए देर न करते हुए जानते हैं इस अनोखे मंदिर के बारे में जिसे पिपलेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है।

गुजरात के सल्दी में भगवान शिव के पिपलेश्वर महादेव मंदिर के बारे में पुराणों में भी जिक्र मिलता है। कहा जाता है कि ये मंदिर भगवान शिव के अन्य मंदिरों से बिल्कुल अलग है। बता दें इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत ये है कि यहां शिवलिंग की पूजा नहीं होती, बल्कि शिवलिंग के जलधर की पूजा की जाती है। जी हां, आप सही पड़ रहे हैं। कहा जाता है कि इस शिव मंदिर में लगातार जलधारा बहती रहती है।
PunjabKesari, Lord Shiva, Shivji, Pipaleshwar Mahadev, Dharmik Sthal,लेकिन बहुत से लोगों के मन में आज भी ये सवाल है कि आखिर ऐसा क्या है जो भक्त इस मंदिर में विराजमान शिवलिंग की पूजा न करके जलधरी यानि बहते हुए जल की पूजा करते हैं?

तो आपको बता दें कि पिपलेश्वर नामक महादेव मंदिर के निर्माण का अब तक कोई सही प्रमाण नहीं मिला है। हालांकि कुछ पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसका जीर्णोद्धार 1981 में ब्रह्मलीन परम विद्या यति ने करवाया था।

यहां चैत्र नवरात्र में श्रीमद्भागवत कथा, पूरे श्रावण मास में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। इसके अलावा यहां हर पूर्णिमा को हवन और शिवरात्रि में रात के चारों प्रहर रुद्राभिषेक होता है।
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बता दें कि मंदिर के गर्भगृह में देवी पार्वती, हनुमान जी और गणेश जी की मूर्तियां स्थापित हैं। साथ ही इस मंदिर को वास्तुकला और शिल्पकला से सुसज्जित किया गया है।

मान्यता है कि शिव का यह मंदिर बेहद पवित्र और अद्भुत है। कहते हैं कि यहां आने वाला कोई भी भक्त कभी खाली हाथ नहीं लौटता। कुछ दंत कथाओं के अनुसार पेढ़ा पटेल नामक चरवाहे की गाय नियमित रूप से पीपल के पेड़ के नीचे एक ही स्थान पर दूध देती थी। जहां बाद में जलधर पाई गई। मान्यता है कि हिन्दू धर्म में जिस प्रकार शिवलिंग पर दूध चढ़ाते हैं ठीक उसी प्रकार वह गाय भी उसी स्थान पर दूध देती थी। जिस कारण ये स्थान बेहद ही पवित्र माना जाता है।
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