Edited By Niyati Bhandari,Updated: 14 Sep, 2019 08:48 AM
बुजुर्गों और पितरों के प्रति श्रद्धा ही असली श्राद्ध है। ब्रह्म पुराण के अनुसार आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में यमराज सभी पितरों को अपने यहां से स्वतंत्र कर देते हैं ताकि वे अपनी संतान से पिंडदान लेने के लिए
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बुजुर्गों और पितरों के प्रति श्रद्धा ही असली श्राद्ध है। ब्रह्म पुराण के अनुसार आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में यमराज सभी पितरों को अपने यहां से स्वतंत्र कर देते हैं ताकि वे अपनी संतान से पिंडदान लेने के लिए पृथ्वी पर आ सकें। कर्मपुराण के अनुसार पितर इन दिनों पृथ्वी पर यमलोक से यह जानने के लिए आते हैं कि उनके कुल के लोग उन्हें याद भी करते हैं या नहीं। यदि श्राद्ध के माध्यम से उन्हें स्मरणांजलि अर्पण नहीं की जाती है तो उन्हें दुख होता है। श्राद्ध करने वाले व्यक्तियों को पितर दीर्घायु, धन, संतान, विद्या तथा विभिन्न प्रकार के सांसारिक सुखों का आशीर्वाद देकर प्रसन्नतापूर्वक अपने लोक में वापस लौट जाते हैं।
अब के समय का जो हाल है, पूछा जा सकता है कि श्राद्ध का औचित्य क्या है? जीते जी माता-पिता की अवहेलना, अनादर, प्रताडऩा और मृत्युपरांत श्राद्ध कर्म करना कोई मायने नहीं रखता। जिस मां-बाप ने पूरा जीवन आप बच्चों का जीवन बनाने के लिए समर्पित किया, उन्हीं मां-बाप को वृद्धावस्था में बदहाली, गैरतभरी जिंदगी जीने को मजबूर करना क्या श्राद्ध के नाम पर ढोंग नहीं है?
अच्छा होगा कि जीते जी बुजुर्गों को वह प्रेम दें, जो उन्होंने अपने बच्चों को दिया। तब जो श्रद्धा होगी वही श्राद्ध का सही रूप होगी। श्राद्ध से सीधा तात्पर्य है अपने पितरों को याद करना, उनके एहसानों को याद करना और अपने जीते जी उन्हें कभी भी दुखी न करना। आज की स्वार्थ भरी दुनिया में बुजुर्गों का आदर घटता जा रहा है। उनकी मौत के बाद उनका श्राद्ध करके यह बताने का प्रयास किया जाता है कि हम कितने पितर-भक्त हैं। यह तो श्राद्ध की तौहीन है।
यदि सचमुच, तहेदिल से मां-बाप व बुजुर्गों के जीवन काल में ही उनकी सेवा की जाए, तभी अपने मृत परिजनों को स्मरणांजलि प्रस्तुत करना श्राद्ध के माध्यम से सार्थक है। श्राद्ध का औचित्य, श्राद्ध की सार्थकता इसी में निहित है कि बुजुर्गों को जीते-जी सम्मान मिले, भरपूर प्रेम से उनकी सेवा-सुश्रुषा हो, जिससे उनकी आत्मा प्रसन्न हो। तभी उनका आशीर्वाद भी लगेगा।