Pitru paksha 2019: क्या सच में पितरों का होता है पुनर्जन्म

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 19 Sep, 2019 09:28 AM

pitru paksha 2019

मृत्यु का शासन सब पर है, चाहे दो पांव वाले प्राणी हों या चार पांव वाले, ऐसा शास्त्रों का कथन है। मृत्यु की सत्ता को ललकारा नहीं जा सकता। मृत्यु सर्वाधिक शक्तिशाली है। मृत्यु जीवन के लिए अनिवार्य है।

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मृत्यु का शासन सब पर है, चाहे दो पांव वाले प्राणी हों या चार पांव वाले, ऐसा शास्त्रों का कथन है। मृत्यु की सत्ता को ललकारा नहीं जा सकता। मृत्यु सर्वाधिक शक्तिशाली है। मृत्यु जीवन के लिए अनिवार्य है। इससे कोई भी मुक्त नहीं है। मृत्यु हो जाने के बाद जो शरीर (मिट्टी, शव) रह जाता है, उसका विधिपूर्वक दाह संस्कार कर दिया जाता है। संस्कार के बाद जो अस्थियां शेष रह जाती हैं, हम उन्हें ‘फूल’ कहते हैं। यह शब्द मृतात्माओं के प्रति श्रद्धा सूचक शब्द है। वास्तव में मृत्यु एक ऐसा प्रसंग है जिसके बाद हमारा पुनर्जन्म निश्चित होता है। मरने वाले का जन्म निश्चित है। इस बात की पुष्टि गीता करती है- ‘‘जातस्य हि ध्रुवों मृत्यु: ध्रुवं जन्म मृतस्य च।’’

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स्मरण रखें मृत प्राणी की आत्मा अगर अतृप्त हो तो कोई भी अन्य योनि ग्रहण करती है। अगर शुभकर्म है तो पितृ रूप में प्रकट होती है और अगर उभयकर्मा है तो पुन: मानव योनि प्राप्त करती है। मृत्यु के उपरांत प्रत्येक आत्मा अपने-अपने क्रमानुसार कोई न कोई योनि अवश्य प्राप्त करती है।

ऋग्वेद कहता है- ‘‘द्वे सृती अश्रृणवि पितृणामाहं देवानामृत मर्तानां ताभ्यामिदं विश्वभेजत् समेति मतंतरा पितरं मातरं च।’’ अर्थात मनुष्यों के दो स्वर्णारोहण मार्ग सुने हैं-एक पितरों का, दूसरा देवों का। मृत्यु के बाद पांच ज्ञानेन्द्रियां, पांच कर्मेन्द्रियां, पांच प्राण, मन और बुद्धि इन सत्रह अंगों को मिलाकर एक सूक्ष्म शरीर बनता है। यही आत्मा का पुनर्जन्म होता है।

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यह आत्मा जो मूल रूप से परमात्मा की प्रतिबिम्ब है, इसे कदापि मृत्यु की वेदना या जन्म की पीड़ा को भोगना नहीं पड़ता और न ही एक बार अस्तित्व में आने के बाद यह कभी अस्तित्वहीन होती है। इस आत्मा ने कभी जन्म नहीं लिया, यह परिवर्तन के मायाजाल से अछूती, शाश्वत रूप में विद्यमान है। यह आत्मा शारीरिक विघटनों के समस्त काल-चक्रों में सदा नित्य रहती है।

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जरा सोचें, शरीर रूपी वाहन पर अब कोई मुरम्मत किया टायर नहीं, कोई जोड़-तोड़ का जीवन नहीं क्योंकि वह ईश्वर की इच्छा है कि हम मृत्यु तक इस पुराने शरीर को ही रखें इसलिए हमें इसे रखना होगा और इसकी देखभाल करनी होगी परन्तु मैं चाहता हूं कि ईश्वर प्रत्येक व्यक्ति को समाधि में जाने की और नारद ऋषि की भांति आसानी से अपने शरीर रूपी वाहन को बदलने की क्षमता प्रदान कर दें। नारद जी दिव्य समाधि सम्पर्क में ईश्वर का गुणगान कर रहे थे और जब वह सामान्य चेतना में वापस आए तो उन्होंने देखा कि उन्होंने अपना पुराना शरीर छोड़ कर नए युवा शरीर में पुनर्जन्म ले लिया था। यह देहांतरण का उच्चतम रूप है।

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