Pitru Paksha 2020: दशमी श्राद्ध पक्ष में इस विधि से करें अपने पूर्वजों का तर्पण

Edited By Jyoti,Updated: 12 Sep, 2020 12:37 PM

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आज 12 सितंबर को पितृ पक्ष की दश्मी तिथि है, जिसके उपलक्ष्य में आज उन लोगों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी मृत्यु इस तिथि को होता है।

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आज 12 सितंबर को पितृ पक्ष की दश्मी तिथि है, जिसके उपलक्ष्य में आज उन लोगों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी मृत्यु इस तिथि को होता है। ज्योतिष शास्त्र में पितृ पक्ष की प्रत्येक तिथि के बारे में वर्णन किया गया है। जिसमें श्राद्ध आदि के मुहूर्त से लेकर उसकी संपूर्ण विधि के बारे में बताया गया है। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार   
श्राद्ध पक्ष में पिंडदान करने से न केवल पितरों की आत्मा को शांति मिलती है बल्कि पितरों का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है। 

यूं तो प्रत्येक वर्ष श्राद्ध आदि जैसे कर्म कांड मुख्यरूप से पावन तीर्थों तथा गंगा घाटों आदि पर संपन्न किए जाते हैं परंतु इस बार कोरोना के चलते पावन तीर्थों पर बहुत कम भीड़ दिखाई, जो सही भी है। 
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बता दें पितृ पक्ष से जुड़ी मान्यताओं के अनुसार गया सिर और गया कूप नामक दो वेदियों पर श्राद्धकर्म का विधान किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस वेदी पर पिंडदान करने से भटक रहे तथा कष्ट भोग रहे पितरों को स्वर्गलोक में स्थान प्राप्त होता है। 

कूप में पिंडदान करने को लेकर कहा जाता है कि यहां श्राद्ध करने वाले व्यक्ति को जीवन में अश्वमेघ यज्ञ करने समान फल मिलता है। कुछ मान्यताओं के अनुसार इस दिन दशमी के श्राद्ध के बाद संकटा देवी का दर्शन-पूजन करने का भी विशेष लाभ प्राप्त होता है। 

श्राद्ध का मुहूर्त
12 सितंबर 2020 को दशमी की तिथि सांय 4 बजकर 13 मिनट तक रहेगी इसके बाद एकादशी की तिथि आरंभ हो जाएगा।

धार्मिक शास्त्रों में अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को इंदिरा एकादशी के नाम से जाना जाता है।

पितृ पक्ष में आने वाली इस एकादशी का विशेष फल बताया गया है। 

पितृ पक्ष में किसी भी तिथि के श्राद्ध करते समय राहु काल समय का विशेष ध्यान रखना चाहिए। 

बता दें इस दिन राहु काल का समय प्रात: 09:10:50 से 10:43:54 तक था। 
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जिसके बाद दशमी को शुभ कार्य अभिजीत महुर्त में किया जा सकता है। जो प्रात: 11:52:08 से 12:41:46 तक है। ऐसे में किए गए कार्यों का फल अभिजीत माना जाता है। 

दशमी श्राद्ध की विधि
स्नान आदि करने के बाद पूजा स्थल पर पूर्वज की तस्वीर स्थापित करके, विधिपूर्वक पूजा आरंभ करें। 

इस दौरान पावन व शुद्ध मंत्रों का जप करते हुए सबसे पहले पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें।  

इसके बाद पहले भगवान विष्णु की पूजा करें तथा अपने पितरों व पूर्वजों का स्मरण करें, उनसे अपनी तमाम गलतियों के लिए क्षमा मांगे और परिवार पर आर्शीवाद बनाए रखने की प्रार्थना करें। 

पितरों के समक्ष अग्नि में गाय का दूध, दही, घी और खीर अर्पित करें एवं पितरों के लिए तैयार किए गए भोजन से 4 ग्रास निकाल कर एक ग्रास गाय, दूसरा कुत्ता, तीसरा कौए और चौथा ग्रास अतिथि या मान पक्ष के समाने रखें।
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जब पूजा संपंन हो जाएं तो किसी ब्राहम्ण को घर बुलाकर भोजन खिलाएं तथा दान-दक्षिणा ज़रूर दें। 

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