रविवार को ग्रह-नक्षत्र बदलेंगे चाल, शुभ पहर के साथ जानें कैसे खुलेगा भाग्य का दरवाजा

Edited By ,Updated: 13 May, 2017 02:52 PM

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14 मई रविवार को रात्रि 10 बजकर 57 मिनट पर सूर्य वृष राशि में प्रवेश करेगा। जिससे सूर्य की वृष संक्रांति एवं ज्येष्ठ का महीना प्रारंभ हो जाएगा। संक्रांति का पुण्यकाल दोपहर बाद से रहेगा।

14 मई रविवार को रात्रि 10 बजकर 57 मिनट पर सूर्य वृष राशि में प्रवेश करेगा। जिससे सूर्य की वृष संक्रांति एवं ज्येष्ठ का महीना प्रारंभ हो जाएगा। संक्रांति का पुण्यकाल दोपहर बाद से रहेगा। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, ज्येष्ठ तीसरा महिना है। जो 11 मई से लेकर 9 जून तक रहेगा। ज्येष्ठ मास में सूर्य देव अग्नि बरसाते हैं अर्थात गर्मी अपने पूरे जोश पर होती है। सूर्य की ज्येष्ठता के कारण ये महीना ज्येष्ठ कहलाता है। ज्योतिष विद्वानों की मानें तो ज्येष्ठा नक्षत्र के कारण भी ये माह ज्येष्ठ नाम से जाना जाता है। धर्म के पथ पर चलन वाले इस महीने का सम्बन्ध जल से जोड़ते हैं, ताकि जल का रक्षण किया जा सके। गर्मी के सरताज इस माह का धार्मिक और प्राकृतिक महत्व भी अत्यधिक है। 


एक महीने तक श्रद्धा भाव से की गई सूर्य और वरुण देव की आराधना शुभ फल प्रदान करती है। सूर्य प्रकाश, ऊष्मा और ऊर्जा प्रदान करता है। एक महीने तक की गई सूर्य उपासना करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। सारा साल सूर्य को अपने पक्ष में करने के लिए किसी अन्य उपाय की अवश्यकता नहीं पड़ेगी। सूर्य और वरुण के निमित्त किए गए उपाय खोलेंगे भाग्य का दरवाजा।

सुबह और शाम सूर्य मंत्र का जाप करें।

 

रविवार को व्रत करें। नमक न खाएं।

 

धार्मिक शास्त्रों के अनुसार दोपहर में सोना नहीं चाहिए लेकिन ज्येष्ठ महीने में दोपहर को सोना शुभ परिणाम देता है।


वरुण जल के देवता के रूप में पूजे जाते हैं। सृष्टि के आधे से ज्यादा हिस्से पर इन्हीं का अधिकार है। जल से ही जीवन का सृजन संभव है। वरुण देवताओं के देवता हैं। देवताओं के तीन वर्गों (पृथ्वी,वायु और आकाश) में वरुण का सर्वोच्च स्थान है। देवताओं में तीसरा स्थान ‘वरुण’ का माना जाता है जो समुद्र के देवता, विश्व के नियामक और शसक सत्य के प्रतीक, ऋतु परिवर्तन एवं दिन रात के कर्त्ता-धर्ता, आकाश, पृथ्वी एवं सूर्य के निर्माता के रूप में जाने जाते हैं। ऋग्वेद का 7वां मंडल वरुण देवता को समर्पित है। कहते हैं कि किसी भी रूप में उनका दुरुपयोग सही नहीं है। वह क्रोधित हो जाएं तो दंड के रूप में लोगों को जलोदर रोग देते हैं।

सुबह और शाम (सूर्यास्त से पहले) पौधों को जल दें। 


अपने घर-दुकान के बाहर पानी के प्याऊ रखकर ऐसी व्यवस्था करें की आते-जाते राहगीर अपनी प्यास बुझा सकें। 


पक्षियों के लिए खुले स्थान अथवा अपने घर की छत पर पानी से भरा पात्र और सतनाजा रखें। 


पानी सहित घड़े का दान करें। 


पंखे का दान करना भी शुभ फलदायी होता है।

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