इस मंदिर में अमावस्या के दिन आती है डायन

Edited By Jyoti,Updated: 14 Feb, 2019 04:42 PM

pohlani kali mata mandir in himachal pradesh

भारत में ऐसे कईं मंदिर और धार्मिक स्थल हैं, जहां देवी मां के अनेक रूपों को पूजा जाता है। परंतु आज हम आपको इनके एक मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जहां इनके एक ऐसे रूप को पूजा जाता है

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भारत में ऐसे कईं मंदिर और धार्मिक स्थल हैं, जहां देवी मां के अनेक रूपों को पूजा जाता है। परंतु आज हम आपको इनके एक मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जहां इनके एक ऐसे रूप को पूजा जाता है जिसके इतिहास के बारे में बारे में किसी को खबर भी नहीं होगी। बता दें कि देवी काली का ये अद्भुत मंदिर डलहौजी के डैनकुंड की सुंदर पहाड़ियों में बसा हुआ है। जानते हैं इस मंदिर से जुड़ी अन्य महत्वपूर्ण बातें-
PunjabKesariदेवी काली के हिमाचल प्रदेश के ज़िला चंबा के डलहौजी से 12 कि.मी की दूरी पर खूबसूरत वादियों में बसे इस मंदिर को पोहलानी नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि इस मंदिर के साथ यहां के लोगों की असीम आस्था जुड़ी हुई है। यहां देवी मां जिस रूप विराजमान हैं, उस पोहलानी देवी कहा जाता है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि पोहलानी देवी तो पहलवानों की देवी कहा जाता है। वैसे तो यहां भक्तों का तांता लगा ही रहता है लेकिन नवरात्रि के दौरान यहां अधिक संख्या में श्रद्धालुओं देखने के मिलते हैं। मान्यता है कि यहां आने वाले हर भक्त की मन्नत पूरी ज़रूर होती है। मन्नत पूरी होने पर भक्त देवी को धन्यवाद देने भी आते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार हजारों वर्ष पहले इस डैनकुण्ड की पहाड़ी के उस मार्ग से कोई भी नहीं आता जाता था, क्योंकि इस पहाडीं पर राक्षसों का वास होता था। तब माता काली ने पहलवान के रूप में आकर उन राक्षसों का संहार किया तब से इस मंदिर का नाम पोहलवानी पड़ा। कहते हैं डेनकुण्ड नामक ये जगह पर डायनों का निवास स्थान था। आज भी यहां ये कुंड देखे जा सकते हैं। लोगों का कहना है कि डैन अमावस्या पर यहां आज भी डायनें आती हैं।
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कुछ पौराणिक कथाओं के मुताबिक लोगों पर बढ़ रहे अत्याचार को देखकर माता महाकाली से डैन कुंड की पहाड़ियों के एक बड़े से पत्थर से प्रकट हुई थी। कहते हैं पत्थर के फटने की आवाज़ दूर दूर तक लोगों को सुनाई दी। देवी काली के इस कन्या रूपी माता के हाथ में त्रिशूल था। ऐसा कहा जाता है कि यही पर माता ने राक्षसों से एक पहलवान की तरह लड़कर उनका वध किया था जिसके बाद से यहां माता को पहलवानी माता के नाम से पुकारा जाने लगा। होवार के एक किसान को माता ने सपने में आकर यहां पर उनका मंदिर स्थापित करने का आदेश दिया था और उनके आदेशानुसार ही यहां पर माता के मंदिर की स्थापना की गई थी। गर्मियों में जहां पर्यटक यहां की ठण्डी हवाओं का लुत्फ़ उठाने के लिए आते हैं, तो वहीं सर्दी के मौसम में बर्फ़ से ढ़के पहाडों का नज़ारा देखने आते हैं। सर्दियों में ये मंदिर और इसके आसपास वर्फ़ की मोटी चादर बिछ जाती है।
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