Edited By Niyati Bhandari,Updated: 09 Apr, 2021 08:36 AM
प्रदोष व्रत हर माह में दो बार आता है। एक शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी पर और दूसरा कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन। भगवान शिव अपने भक्तों को सहज ही निहाल कर देते हैं। जो लोग प्रदोष व्रत को बड़ी श्रद्धा और
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Pradosh Vrat 2021: प्रदोष व्रत हर माह में दो बार आता है। एक शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी पर और दूसरा कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन। भगवान शिव अपने भक्तों को सहज ही निहाल कर देते हैं। जो लोग प्रदोष व्रत को बड़ी श्रद्धा और नियम से करते हैं, उनके सभी दुख-व्याधियां दूर होती हैं। साथ ही धन, ऐश्वर्य और सुख की प्राप्ति होती है। भोले नाथ ने ही कुबेर को धन का भंडार दिया, रावण को स्वर्ण लंका दान में दे दी। इनसे बड़ा भंडारी और दाता जगत में नहीं होगा। त्रयोदशी के दिन पूरे नियम से व्रत को करने से संयम का पालन करने से और इन विधियों को करने से भोले भंडारी आपके भी भंडार भरेंगे।
प्रातः काल उठते ही सर्वप्रथम अपने आराध्य का ध्यान करते हुए, गंगा जल को प्रणाम करें। इसके बाद सवच्छ होकर पूजा आरंभ करें।
भगवान शिव की पूजा में आपको, पुष्प, अक्षत, जनेऊ, रोली, वस्त्र, बिल्व पत्रों के अलावा जो खास वस्तु रखनी है वो है, आंकड़े का फूल, चंदन का इत्र, तेजपत्ता, खड़ाऊ, खस-खस और केसर। ये सब सामग्री चढ़ाने के बाद, प्रभु से तेजपत्ता प्रसाद के रूप में मांग लाएं और घर पर अपनी तिजोरी में लाल कपड़े में बांध कर रखें। धन के भंडार खुल जाएंगे।
संध्या के समय 5:15 से लेकर 8 बजकर 4 मिनट तक आपको नदी के किनारे पहाड़ी मिट्टी से एक शिवलिंग बनाना है, फिर पूरी विधि से पूजा सामग्री चढ़ाते हुए पानी और दूध की धारा तब तक डालनी है जब तक कि वह शिवलिंग पिघल कर पानी में समाहित न हो जाए। फिर प्रणाम करते हुए अपने जीवन में हर प्रकार के सुख की कामना करें।
आज के दिन भगवान शिव को चांदी से बनी श्रींगी से रूद्राभिषेक करने से सभी पापों का नाश होता है और लक्ष्मी आती है।
प्रदोष वाले दिन अगर घर के द्वार पर गाय या नंदी महाराज का आगमन हो जाए तो अति शुभ फलदाई माना गया है। अपने हिस्से का भोजन उन्हे करवाएं, आपके सभी कष्ट दूर होंगे।
कई घरों में शिवलिंग रखा होता है और वे घर के मन्दिर में रख कर पूजा करते हैं, शिवलिंग को घर के ब्रह्मस्थान पर रख कर जलाभिषेक करने से सभी वस्तु दोष नष्ट होते हैं।
रुद्राक्ष की माला से शिव जी के मंत्रों का जाप करें- ॐ नमः शिवाय, नमो नीलकण्ठाय और ॐ पार्वतीपतये नमः।
नीलम
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