Vrata: गरीबी और ऋणों से मुक्ति के लिए करें ये व्रत’

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 07 May, 2021 09:05 AM

pradosh vrat

प्रत्येक मास की त्रयोदशी तिथि को भगवान शिव की प्रसन्नता के लिए प्रदोष व्रत रखने का विधान है। शास्त्रों में बताया गया है कि वार के अनुसार प्रदोष व्रत का अलग-अलग फल मिलता है। शनिवार के दिन प्रदोष व्रत

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Pradosh Vrat 2021: प्रत्येक मास की त्रयोदशी तिथि को भगवान शिव की प्रसन्नता के लिए प्रदोष व्रत रखने का विधान है। शास्त्रों में बताया गया है कि वार के अनुसार प्रदोष व्रत का अलग-अलग फल मिलता है। शनिवार के दिन प्रदोष व्रत पड़ने पर यह ‘शनि प्रदोष व्रत’ कहलाता है और मंगलवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत को भौम प्रदोष व्रत कहा जाता है। शनिवार और मंगलवार के प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है।
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Bhaum Pradosh Vrat: भौम प्रदोष व्रत के दिन शिव जी की पूजा करने से मंगल ग्रह के कारण प्राप्त होने वाले अशुभ ग्रहों के प्रभाव में कमी आती है, आरोग्य सुख की प्राप्ति होती है तथा शरीर ऊर्जावान और शक्तिशाली होता है। मंगलवार को प्रदोष व्रत होने से इस दिन संध्या के समय हनुमान चालीसा के पाठ का भी कई गुणा लाभ मिलता है।

Mangala Dosha: मंगल दोष के प्रभाव को कम करने के लिए इस दिन मसूर की दाल, लाल वस्त्र, गुड़ और तांबे का दान करना उत्तम फलदायी होता है। मंगल की शांति के लिए जो लोग प्रदोष व्रत करना चाहते हैं वे दिन भर व्रत रख कर शाम के समय भगवान शिव एवं हनुमान जी की पूजा करें। हनुमान जी को बूंदी के लड्डू अथवा बूंदी अर्पित करके लोगों में प्रसाद बांटने के बाद भोजन करें।

Pradosh Vrat benefits: सूर्य के अस्त होने के बाद और रात के आने से पहले का समय अर्थात दिन का ढलना और रात की शुरुआत प्रदोष काल होता है। इस काल में किया जाने वाला व्रत प्रदोष व्रत कहलाता है। इस व्रत में भगवान शंकर की पूजा की जाती है। प्रदोष व्रत हर माह में शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन रखा जाता है। पद्म पुराण के अनुसार इस दिन मंगल देवता के नामों का पाठ करने वाले व्रती को कर्ज से छुटकारा मिल जाता है।
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Pradosh vrat vidhi प्रदोष व्रत विधि
प्रदोष व्रत करने के लिए उपासक को त्रयोदशी के दिन प्रात: सूर्योदय से पूर्व उठना चाहिए। नित्यकर्मों से निवृत्त होकर, भगवान श्री भोले नाथ का स्मरण करें। इस व्रत में आहार नहीं लिया जाता। दिन भर उपवास रखने के पश्चात सूर्यास्त से एक घंटा पहले, स्नान आदि कर श्वेत वस्त्र धारण किए जाते हैं।

ईशान्य कोण की दिशा में किसी एकांत स्थल को पूजा करने के लिए प्रयोग करना विशेष शुभ रहता है। पूजा स्थल को गंगाजल या स्वच्छ जल से शुद्ध करने के बाद, गाय के गोबर से लीप कर, मंडप तैयार किया जाता है। इस मंडप में पद्म पुष्प की आकृति पांच रंगों का उपयोग करते हुए बनाई जाती है।

प्रदोष व्रत की आराधना करने के लिए कुश के आसन का प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार पूजन क्रिया की तैयारियां कर उत्तर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठ कर भगवान शंकर का पूजन करना चाहिए। पूजन में भगवान शिव के मंत्र ॐ नम: शिवाय’ का जाप करते हुए शिवजी को जल का अर्घ्य देना चाहिए।

ऐसा माना जाता है कि प्रदोष काल में भगवान भोलेनाथ कैलाश पर्वत पर प्रसन्न मुद्रा में नृत्य करते हैं। जिनको भगवान भोलेनाथ पर अटूट श्रद्धा विश्वास हो, उनको त्रयोदशी तिथि में पड़ने वाले प्रदोष व्रत का नियम पूर्वक पालन कर उपवास करना चाहिए।

यह व्रत उपवास को धर्म, मोक्ष से जोड़ने वाला और अर्थ, काम के बंधनों से मुक्त करने वाला है। भगवान शिव की आराधना करने वाले भक्तों को गरीबी, मृत्यु, दुख और ऋणों से मुक्ति मिलती है।

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