Pradosh Vrat June 2021: शिवलिंग पर क्यों किया जाता है ‘जलाभिषेक’, जानें महत्व

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 22 Jun, 2021 01:46 AM

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आज 22 जून 2021 ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि है। मंगलवार को प्रदोष व्रत आने से इसे भौम प्रदोष व्रत कहा जाएगा। वैसे तो इस व्रत से हर मनोकामना पूरी होती है लेकिन

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Bhaum Pradosh Vrat 2021 June: आज 22 जून 2021 ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि है। मंगलवार को प्रदोष व्रत आने से इसे भौम प्रदोष व्रत कहा जाएगा। वैसे तो इस व्रत से हर मनोकामना पूरी होती है लेकिन जिनकी कुंडली में मंगल खराब होता है, उन्हें ये व्रत अवश्य करना चाहिए। आज सिद्ध योग के साथ साध्य योग बन रहा है। इसके अतिरिक्त ये रहेंगे प्रदोष व्रत के पूजा मुहूर्त-

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ब्रह्म मुहूर्त- 03:36 ए एम से 04:18 ए एम तक।
अभिजित मुहूर्त- 11:23 ए एम से 12:17 पी एम तक।
विजय मुहूर्त- 02:07 पी एम से 03:02 पी एम तक।
गोधूलि मुहूर्त- 06:28 पी एम से 06:52 पी एम तक।
अमृत काल- 06:27 ए एम से 07:54 ए एम तक।
त्रिपुष्कर योग- 04:59 ए एम से 10:22 ए एम तक।

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'Jalabhishek' performed on Shivling शिवलिंग पर क्यों किया जाता है ‘जलाभिषेक’: सोमवार- सोम अर्थात चंद्र, जल तत्व के देवता हैं इसलिए शीतलता उनका स्वाभाविक गुण है। विष के ताप से दग्ध नीलकंठ शिव को सोम प्रिय है। शीतलता की प्राप्ति के लिए वह चंद्र को अपनी जटा में धारण करते हैं इसीलिए उनका एक नाम ‘चंद्रशेखर’ भी है। स्कंद पुराण तथा शिवरहस्य के अनुसार सोमवार का उपवास चैत्र, वैशाख, श्रावण, कार्तिक और मार्गशीर्ष में होता है। शिव के पूजन में जलाभिषेक का माहात्म्य सुविदित है।

शिव की आठ मूर्तियां प्रसिद्ध हैं : शर्व, भव, रुद्र, उग्र, भीम, पशुपति, ईशान तथा इन मूर्तियों में दूसरी भावमूर्ति जलमयी है जो समस्त जगत की जीवनदायिनी है। शिव का जलाभिषेक उनकी लिंगमूर्ति पर ही किया जाता है। शिव की अन्य पूजाओं में जलाभिषेक की विधि स्वभावत: प्रिय है। अभिषेक के लिए गंगाजल या गंगाजल मिला हुआ पवित्र जल लेना चाहिए। गंगाजल के अभाव में पवित्र नदी का जल, कूप आदि के शुद्ध पवित्र जल से अभिषेक करना चाहिए।
 
शिवलिंग का दुग्धाभिषेक भी होता है। पीतल, तांबा, सोना या यांदी की बनी ‘सींगी’ शृंगाकार पात्र में जल या दूध भर कर रूद्रपाठ के साथ लिंगाभिषेक करते हैं। पूरा श्रावण मास शिव के जलाभिषेक-पर्व की गरिमा पर आश्रित है। भगवान नीललोहित शिव जलाभिषेक के इतने प्रेमी हैं कि उन्होंने साक्षात गंगा को अपने जटाजाल में रख लिया है ताकि गंगा उनका निरंतर जलाभिषेक करती रहें। 

शिव ने अभिषेक के सारे उपादानों-गंगा, चंद्रमा, श्रावण मास और सोमवार को पूरी तरह अपना अंगीभूत कर लिया है। श्रावण मास ने शिव के ‘जलाभिषेक’ के रूप में महत्ता को प्राप्त किया है।

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